वर्मा-कम्पोस्ट बनाने की विधि और इसका उपयोग
आज के सघन खेती के दौर में भूमि की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए समन्वित-पोषक तत्व प्रबन्धन बहुत जरूरी है जिसके अन्तर्गत प्राकृतिक खादों का प्रयोग बढ़ रहा है ! इन प्राकृतिक खादों में गोबर की खाद, कम्पोस्ट और हरी खाद मुख्य है ! ये खादें मुख्य तत्वों के साथ-साथ गौण तत्वों से भी भरपूर होती है ! गोबर का प्रयोग ईंधन के रूप (70 प्रतिशत) होने के कारण इससे बनी खाद कम मात्रा में प्राप्त होती है ! हरी खाद तथा अन्य खादें भी कम मात्रा में प्रयोग होती है ! इसीलिए जैविक पदार्थ का प्रयोग बढ़ाने के लिए कम्पोस्ट खाद बनाने की वैज्ञानिक विधि अपनानी चाहिए ! पिछले कुछ सालों में कम्पोस्ट बनाने की एक नई विधि विकसित की गई है जिसे कम्पोस्ट बनाने के लिए केंचुए द्वारा कम्पोस्ट बनाना कहा जाता है व तैयार कम्पोस्ट को वर्मी-कम्पोस्ट कहते है। चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग ने यह विधि विकसित की है।
आवश्यक सामग्री
फसल अवशेष व कूड़ा-कर्कट 60 प्रतिशत गोबर (20-25 दिन पुराना या ताजा) 30 प्रतिशत, खेत की मिट्टी-10 प्रतिशत, ढ़कने के लिए पुरानी बोरी या कड़वी, पानी छाया (छप्पर या पेड़ के नीचे)।
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि
इसकी मुख्यतया दो विधिया होती है:
1. मेढ़ में बनाना: यह वर्मी-कम्पोस्ट बनाने की सबसे अच्छी विधि है ! इस विधि में अच्छा वायु संचार और पानी लगाना तथा ठीक देखभाल होने के कारण केचुएं की कार्यक्षमता बढ़ जाती है ! इसी कारण कम्पोस्ट जल्दी बन कर तैयार हो जाती है ! इस विधि में मेढ़ की लम्बाई-आवश्यकतानुसार चैड़ाई-90 सैं.मी. और उँचाई 60 सैं.मी. रखते हैं।
2. गड्ढ़े में बनाना: बहुत अधिक गर्मी या सर्दी के मौसम में केंचुओें को विपरीत अवस्थाओं से बचाने के लिए वर्मी-कम्पोस्ट गड्ढ़े में बनाई जा सकती है! गड्ढ़े की लम्बाई आवश्यकतानुसार चैड़ाई 90 सैं.मी. व गहराई 60 सै.मी. रखी जाती है !
विधि
कम्पोस्ट बनाने की दोनों विधियों में विभिन्न सामग्री का प्रयोग निम्न प्रकार किया जाता है
* सबसे नीचे 12-15 सैं.मी. मोटी कड़वी या सरसों या अन्य भूसे की परत लगाते हैं।
* कड़वी की परत के ऊपर 10-12 सैं.मी. मोटी गोबर की परत लगाई जाती है ।
* गोबर की परत के ऊपर 30-45 सै.मी. मोटी फसल अवशेष या कूड़ा-कर्कट की परत लगाते हैं !
* इसके ऊपर 3-4 सै.मी. मोटी मिट्टी की परत लगाई जाती है। यह मिट्टी किसी खेत से या जहाँ वर्मी-कम्पोस्ट पहले बनाई जा रही है, उस स्थान से प्राप्त की जा सकती है।
* सबसे ऊपर 5-6 सैं.मी. मोटी गोबर की परत लगाई जाती है।
* ऊपरलिखित विधि से बनाई गई मेंढ या गड्ढ़े में केंचुए लगा दिये जाते हैं। केंचुओं की संख्या 400-500 प्रति घनमीटर या 150-200 प्रति क्विंटल सामग्री की दर से लगाते हैं। अगर सामग्री की परत उसी स्थान पर लगाई गई है जहाँ पहले से वर्मी-कम्पोस्ट बनाई जा रही हो और केंचुए अच्छी मात्रा में है तो अलग से केचुंए लगाने की जरूरत नहीं है !
* केचुए लगाने के बार मेंढ़ या गड्ढ़े में डाली समग्री को पुरानी बोरी या कड़वी की परत से अच्छी तरह ढ़क दें, इससे केंचुओं का धूप से बचाव होता है क्योंकि केंचुए हमेशा अँधेरे में काम करते हैं !
* केंचुओं को उचित प्रकार से काम करने के लिए अच्छी नमी की आवश्यकता होती है। नमी की मात्रा सामग्री 75 प्रतिशत जल धारण शक्ति के लगभग होनी चाहिए।
इस नमी के लिए गर्मियों में प्रतिदिन 2-3 बार,
सर्दियों में एक बार तथा बरसात के मौसम में आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करना चाहिए ! यह ध्यान रखना चाहिए कि सामग्री ऊपर से नीचे तक गीली हो !
* कम्पोस्ट बनाने के स्थान मे चारों और गर्मियों में ढेंचा या सनई की 2-3 फुट चैड़ी हरी पट्टी लगानी चाहिए ताकि तापमान नीचे रखा जा सके ! अगर कम्पोस्ट छायादार स्थान पर बनाई जा रही हो, तब भी हरी पट्टी का फायदा हैं !
* सर्दियों में उचित तापमान रखने के लिए 8-10 दिन में एक बार ताज गोबर की 2-3 सै.मी. परत कम्पोस्टिंग सामग्री पर लगानी चाहिए !
* बरसात के दिनों में कम्पोस्ट ऊँचे स्थान पर बनानी चाहिए जहाँ जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए !
* वर्मी-कम्पोस्ट बनाने के लिए उचित तापक्रम 28-35 सैंटीग्रेड होता है !
वर्मी-कम्पोस्ट में विभिन्न तत्वों की मात्रा
नाइट्रोजन : 1-2.5 प्रतिशत
फास्फोस : 1-1.5 प्रतिशत
पोटाश : 2-3 प्रतिशत
वर्मी-कम्पोस्ट के प्रयोग से लाभ
* इसके प्रयोग से मृृदा में जैविक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होती है !
* आवश्यक तत्वों की संतुलित मात्रा में उपलब्धि होती है।
* मृदा व जल का संरक्षण अधिक होती है।
* पौधों की जड़ों के लिए उचित वातावरण बनता है व इनकी वृद्धि अच्छी होती है।
* फार्म अवशेष पुशशाला व नगरपालिका के कूड़े-कर्कट का उचित प्रयोग होता है !
* ग्ंदगी में कमी होती है तथा पर्यावरण की सुरक्षा होती है !
* यह एक अच्छा व्यवसाय है तथा रोजगार बढ़ाने में सहायक है।