मशरूम खेती बीमारिया व् रोकथाम की सम्पूर्ण जानकारी



हमारे देश की दो-तिहाई से ज्यादा आबादी अपने जीवनयापन के लिए कृषि पर आश्रित है ! हरित क्रांति से कृषि की पैदावार में काफी वृद्धि हुई है तथा गत वर्ष हमारे देश में 25.0 करोड़ टन से ज्यादा खाद्यानों का उत्पादन हुआ परंतु हमारी तेजी से बढ़ रही आबादी सवा सौ करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी है ! इतनी बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए कृषि पैदावार में लगातार बढ़ोतरी की आवश्यकता है !

कृषि पैदावार को बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों व कीटनाशकों व फंफूदनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से हमारे पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है ! विभिन्न प्रकार के फसल अवशेषों को काफी मात्रा में जलाया जाता है ! अपने पर्यावरण को होने वाले नुकसान को बचाना अति आवश्यक है !

फालतू के फसल अवशेषों के न जलाकर इसका सदुपयोग करना हमारी आज की जरूरत है ! इस अवशेषों का सदुपयोग-विभिन्न प्रकार की खुम्ब उगाने में भली-भांति किया जा सकता है !
जिससे हमारा पर्यावरण भी बच सकता है और इसमें खुम्ब उगाकर बड़ी आबादी के बड़े हिस्से को कुपोषण से भी बचाया जा सकता है ! खुम्ब से न केवल पौष्टिक भोजन प्राप्त करेंगे, बल्कि विभिन्न बीमारियों का ईलाज में खुम्ब के सेवन से ठीक किया जा सकता है ! कृषि अवशेषों एवं अवशिष्टों के पुनः उपयोग के कारण खुम्ब की खेती को वातावरण सहयोगी का दर्जा भी प्राप्त है और खुम्ब के खेती के लिए उपयोग किया जा सकता है !

खुम्ब उत्पादन का लाभकारी व्यवसाय

खुम्ब उगाने के लिए खेत-खलिहान की आवश्यकता नहीं पड़ती ! इसे आसानी से ठण्डे कमरे में रैकों में ट्रे रखकर या थैलियों में उगाया जा सकता है ! एक अनुमान के अनुसार देश में खुम्ब उत्पादन 12,000 टन (वर्ष 1991-93) से बढ़कर करीब 40,000 टन (वर्ष 1997| 98) 1,00,000 टन (वर्ष 2010-11) तक पहुंच गया है !

विशेषकर छोटे उद्यमियों के लिए खुम्ब उगाना मुनाफे वाला व्यवसाय है ! वे चाहें तो कुछ पूंजी लगाकर कमरे में नियंत्रित दशाओं के तहत साल भर खुम्बी उगा सकते हैं ! देश में व्यावसायिक तौर पर सफेद बटन खुम्ब, ढिंगरी व दूधिया खुम्ब का उत्पादन होता है !  

बटन खुम्ब (एगैरिकस बाइस्पोरस)-

यह खुम्बी की सबसे लोकप्रिय सफेद किस्म है ! यह खुम्ब पंजाब, हरियाणा, हिमाचल व दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में उगाई जाती है ! इसके लिए तापमान भी अधिक उपयुक्त है !

बटन खुम्बी का उत्पादन : 

देश में अभी तक 90 प्रतिशत व्यावसायिक उत्पादन इसी किस्म का होता है ! यह खुम्बी सर्दियों में अक्तूबर से मार्च में उगायी जाती है ! इस दौरान तीन-तीन माह की इसकी दो फसलें ली सकती है ! इसकी प्रारंभिक बढ़वार के लिए 22-25 सें. तापमान उपयुक्त है ! 

इस तापमान पर इसका कवक जाल बहुत गति से बढ़ता है ! जबकि इसके फलनकाय के बनने तथा शीघ्र वृद्धि के लिए 14-18 सें. तापमान उत्तम होता है ! इससे कम तापमान पर खुम्बी की बढ़वार बहुत धीमी गति से होती है ! जबकि अधिक तापमान हानिकारक होता है !

इस खुम्बी की खेती दो प्रकार से की जाती है ! पहली मौसम के अनुसार और दूसरी वातानुकूलित वातावरण में ! खुम्ब की खेती के लिए खेत तथा धूप की जरूरत वहीं होती, बल्कि इसे कृत्रिम ढंग से तैयार की गयी कम्पोस्ट (खाद) पर उगाया जाता है !

कम्पोस्ट तैयार करने की दो विधियां !

अन्य कवकों की तरह खुम्ब भी परपोषित जीव है ! इसे उगने के लिए कार्बन योगिकों की जरूरत पड़ती है जोकि स्वपोषित पौधों द्वारा बनाए जाते हैं ! अन्य फसलों की तरह खुम्ब को कार्बन के अतिरिक्त तत्वों जैसे-नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर, पोटाशियम, लोहा तथा विटामिनो जैसेथाईमिन, बायोटिन की जरूरत पड़ती है ! 

इन तत्वों पर खुम्ब सीधे नहीं उग सकती, इस तत्वों को गला-सड़ा कर एक खास किस्म की खाद तैयार की जाती है ! गलाने-सड़ाने को सूक्ष्म जीव कईं रासायनिक क्रियाओं द्वारा उपरोक्त अवयवों में पाया जाने वाले तत्वों को ऐसी सामग्री में तैयार कर देते हैं जिसमें सारे तत्व पाए जाते हैं ! इस प्रकार तैयार खाद को कम्पोस्ट कहते हैं और यही खाद खुम्ब के लिए चयनात्मक होती है ! 

फसल अवशेषों में पाए जाने वाले प्रतिस्पर्धी फफूद इस तैयार खाद में नहीं बचती और न ही आगे पनपते केवल खुम्ब ही तंतुओं के रूप में फैलती है और कुछ समय बाद खुम्ब की पैदावार मिलने लगती है !

खाद बनाना क्यों जरूरी है !

• तैयार खाद की भौतिक संरचना इस प्रकार बने कि खाद में इच्छित मात्रा में वायु और पानी खुम्ब को मिलती रहे ! खाद बनाने से मिलाई हुई सामग्री में ऊष्मा (तापमान) वृद्धि की प्रवृति को समाप्त करना ! ! कच्ची सामग्री में विभिन्न प्रकार के तत्वों को ऐसी स्थिति में बदलना जो खुम्ब को आसानी से उपलब्ध होती रहे !
• सफेद बटन खुम्ब के लिए अति चयनात्मक माध्यम बनाने के लिए खाद में वांछित पौष्टिकता पानी की मात्रा अम्लीय या क्षारीय का समावेश करने के लिए !

कम्पोस्ट बनाने की दो विधियां हैं -

  • लंबी अवधि विधि
  • लघु अवधि विधि

दोनों विधियों में कम्पोस्ट मिश्रण को बाहर फर्श पर सड़ाया जाता है, परंतु लघु विधि में लगभग दो सप्ताह बाद इसे एक खास किस्म के कमरे में भर दिया जाता है जिसे चैम्बर या टन्नल के नाम से जाना जाता है !

चैम्बर का फर्श जालीदार होता है तथा उसमें नीचे से प्रेशर से ब्लोअर (पंखा) द्वारा हवा फेंकी जाती है जो सारे कम्पोस्ट में से गुजरती हुई ऊपर की ओर निकल जाती है ! इसी हवा को ब्लोअर द्वारा कम्पोस्ट में लगातार छह-सात दिन तक घुमाया जाता है ! 

इस कम्पोस्ट की उत्पादन क्षमता लंबी अवधि द्वारा बनाये गये कम्पोस्ट से लगभग दो गुनी है ! अधिकतर किसानों के पास चैम्बर की सुविधा नहीं है क्योंकि अधिकतर किसान छोटे हैं तथा वह लंबी अवधि द्वारा ही कम्पोस्ट बनाते हैं ! इस विधि को नीचे विस्तारपूर्वक बताया गया है !

लम्बी अवधि से खाद (कम्पोस्ट) बनाने की विधि

इस विधि से कम्पोस्ट तैयार करने में समय अधिक (करीब 28 दिन) लगता है ! किंतु इसमें किसी विशेष महंगी मशीन या यंत्र की आवश्यकता नहीं पड़ती है ! छोटे किसान इस विधि से आसानी से कम्पोस्ट तैयार कर सकते हैं ! कम्पोस्ट बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला भूसा ताजा तथा वर्षा में भीगा हुआ नहीं होना चाहिए ! 

धान की पुआल अथवा गेहूं के भूसे के स्थान पर सरसों का भूसा भी ले सकते हैं, परंतु सरसों के भूसे के साथ मुर्गी खाद का प्रयोग अवश्य करें ! अधिक कम्पोस्ट बनाने हेतु सभी सामग्रियां अनुपात से बढ़ाई जा सकती हैं ! 

नाइट्रोजन की मात्रा तैयार कम्पोस्ट में 1.5 प्रतिशत के लगभग होनी चाहिए ! उपर्युक्त किसी भी मिश्रण के प्रयोग से लगभग 600 किलोग्राम तैयार कम्पोस्ट मिलेगा !

खाद (कम्पोस्ट) बनाने की अनुसूची

सर्वप्रथम भूसे को अगर हो सके तो पक्के फर्श पर अन्यथा किसी साफ स्थान पर फैलाकर दो दिन तक पानी से भली प्रकार से गीला कर लें ! भूसे को ठीक प्रकार से गीला करने के लिए भूसे की तह एक फुट के लगभग होनी चाहिए तथा पानी डालने के साथ-साथ तांगली (जैली) से पलटते रहना चाहिए ! इसके बाद नीचे दिये कार्यक्रम के अनुसार कम्पोस्ट बनाना चाहिए ! | अनुसूची----0, +6, +10, +13, +16, +19, +22, +25, +28 दिन  !

0-दिन : 

गीले भूसे को एक फुट की तह में बिछा देना चाहिए ! इसके साथ रसायन उर्वरक छह किलोग्राम किसान खाद, 2.4 किलोग्राम यूरिया, तीन कि. ग्रा.सुपर फास्फेट, तीन किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश तथा 15 कि.ग्रा.गेहूं की छानस (चोकर) बिखेर दें तथा अच्छी तरह मिला दें ! 

इसके बाद पांच फुट ऊंचा, पांच फुट चौड़ा तथा लंबाई सुविधानुसार चट्टे बना दें ! ढेर बनाने के 24 घंटे बाद ही ढेर के अंदर का तापमान बढ़ने लगेगा तथा 70-75 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच जाता है !

+6 दिन (पहली पलटाई): 

ढेर के बाहरी भाग हवा में खुले रहने से सूख जाते हैं जिससे खाद अच्छी तरह नहीं सड़ती ! खाद की सामग्री के हिस्से को सही तापमान पर पहुंचाने के लिए खाद की पलटाई की जाती है ! पलटाई देते समय यह ध्यान जरूर रखें कि चट्टे के बाहर का भाग अंदर तथा अंदर का भाग बाहर आ जाये तथा बाहर के सूखे भाग पर पानी का हल्का छिड़काव कर दें ! इस पलटाई के समय शेष तीन किलोग्राम किसान खाद, 1.2 किलोग्राम यूरिया तथा 15 किलोग्राम चोकर मिला दें ! ढेर को दोबारा से 0 दिन जैसा बना दें !

+10वें दिन (दूसरी पलटाई) : 

खाद के ढेर के बाहर के एक फुट खाद को अलग निकाल लें तथा इस पर पानी का छिड़काव करके पलटाई करते समय ढेर के बीच में डाल दें ! इस पलटाई के समय खाद में 5 किलोग्राम शीरा 10 लिटर पानी में मिलाकर ढेर बनाने से पहले ही सारे खाद ! में भली-भांति मिला दें !

+13वें दिन (तीसरी पलटाई) : 

खाद को जैसे दूसरी पलटाई दी थी उसी तरह तीसरी पलटाई देनी चाहिए ! बाहर के सूखे भाग पर हल्का पानी जरूर छिड़कें ! खाद में नमी न तो अधिक और न कम होनी चाहिए ! खाद में 30 किलोग्राम जिप्सम मिला लेना चाहिए ! खाद के ढेर को ठीक उसी तरह से तोड़ना चाहिए जैसे कि दसवें दिन दूसरी पलटाई पर तोड़ा गया था और फिर दोबारा से वैसा ही चट्टा बना देना चाहिए !

+16वें दिन (चौथी पलटाई) : 

खाद के ढेर को पलटाई देकर फिर से चट्टा बना देना चाहिए ! खाद में नमी ठीक रखें !  

+19वें दिन (पांचवीं पलटाई) : 

खाद के ढेर को पलटाई देकर फिर से चट्टा बना देना चाहिए ! 

+22वें दिन (छठी पलटाई) : 

खाद के ढेर को पलटाई देकर फिर से चट्टा बना देना चाहिए !

25वें दिन (सातवीं पलटाई) : 

खाद के ढेर को पलटाई देकर फिर से चट्टा बना दें ! 

+28वें दिन : 

इस दिन खाद का परीक्षण अमोनिया तथा नमी के लिए किया जाता है ! यदि खाद में अमोनिया गैस की बदबू नहीं है तथा पानी की मात्रा भी उचित है तो खाद बिजाई के लिए तैयार है ! बिजाई से पहले खाद के ढेर को खोल दें, ताकि खाद ठण्डी हो जाये, यदि विशेष परिस्थितियों में खाद में अमोनिया गैस रह गई हो ! तो हर तीसरे दिन पलटाई देते रहना चाहिए ! 

मुर्गी की बीट वाली खाद में अमोनिया गैस रहने की आशंका रहती है ! अमोनिया गैस खुम्ब के जाले (कवक जाल) अथवा बीज के लिए हानिकारक है ! 


पानी की उचित मात्रा की पहचान करने का सबसे आसान तरीका यह है कि थोड़ी सी खाद को मुट्ठी में लेकर दबा कर देखें ! पानी की बूंदें अंगुलियों के बीच से बाहर आनी चाहिएं, परंतु पानी की धार नहीं बननी चाहिए ! 

यदि पानी की मात्रा आवश्यकता से अधिक है तो खाद को खोलकर हवा लगवानी चाहिए !

अच्छे कम्पोस्ट अथवा खाद के लक्षण

·        तैयार खाद का रंग गहरा भूरा होना चाहिए !
·        खाद में पानी की मात्रा 68-70: होनी चाहिए ! •
·        तैयार कम्पोस्ट में नाइट्रोजन लगभग 2.3-2.5 : होनी चाहिए !
·        तैयार खाद में अमोनिया की बदबू नहीं आनी चाहिए !

लघु विधि (पॉश्चुरीकृत) से कम्पोस्ट बनाना –

इस विधि में कम्पोस्ट दो चरणों में तैयार किया जाता है ! पहला साधारण विधि की तरह ही होता है ! किंतु इसमें पलटाई हर दूसरे दिन (48 घंटे) के बाद की जाती है ! तीसरी बार की पलटाई में जिप्सम मिला दिया जाता है ! 

आठ दिन के बाद कम्पोस्ट दूसरे चरण के लिए तैयार हो जाता है ! दूसरे चरण में कम्पोस्ट को सीधे या पेटी में भरकर भाप द्वारा पहले से ही गर्म किए हुए निर्जीवीकरण कक्ष में जिसका तापमान 450 सें. हो में रखें !

तत्पश्चात् इस कक्ष के सभी खिड़की दरवाजे बंद कर इसका तापमान भाप द्वारा 58-58 सें. पर दो-तीन बनाए रखें ! इसके बाद दो घंटे के लिए इस कक्ष का तापमान 60-62 सें.पर स्थिर रखें ! इसे गिरकर 45 सें. तक आने दें ! अगले तीनचार दिनों में कम्पोस्ट का तापमान तब सामान्य ;25-30 सें. पर पहुंच जाये तो कम्पोस्ट तैयार हो जाती है ! 

पूरी तरह तैयार कम्पोस्ट गहरे भूरे रंग की एवं गंध रहित होती है ! इस विधि से कम्पोस्ट 19-20 दिन में तैयार हो जाती हैं एवं इसका पी-एच मान लगभग उदासीन होता है ! पेटियों में भरते समय कम्पोस्ट न बहुत सूखी और न ही बहुत गीली होनी चाहिए ! 

पॉश्चुरीकृत कम्पोस्ट खाद प्रयोग करने से खुम्बियों की पैदावार अधिक मिलती है ! साथ ही रोग समस्या भी कम होती है ! किंतु यह प्रक्रिया कुछ जटिल तथा महंगी है ! इस कारण साधारण कम्पोस्ट बनाने की विधि का ही अधिक प्रयोग होता है !

बीज (स्पान) की मात्रा

बिजाई के लिए ! 100 कि.ग्रा.तैयार खाद के लिए 500-750 ग्राम बीज काफी है ! बीज प्राप्त करने के लिए कम से कम एक महीना पहले बुकिंग करवानी पड़ती है ! खुम्ब की अधिक पैदावार लेने के लिए बीज शुद्ध व अच्छी किस्म का होना चाहिए ! खुम्ब का बीज ग्लूकोज की खाली बोतलों या पोलिप्रोपिलिन बैगों में तैयार किया जाता है !

खाद में बिजाई (स्पानिंग) बिजाई

खुम्ब की खेती में प्रयोग होने वाले बीज को खुम्ब का बीज (स्पान) कहते हैं ! खुम्ब के बीज अच्छी कंपनी से प्राप्त करें जो एक माह से अधिक पुराने न हों ! बिजाई करने के लिए बीज को कम्पोस्ट पर बिखेर दें तथा उस पर दो-तीन सें. मी. मोटी कम्पोस्ट की परत चढ़ा दें !

दूसरी विधि से पेटी में तीन इंच मोटी कम्पोस्ट की तह लगाने के बाद उस पर बीज की आधी मात्रा बिखेर देते हैं ! इसके बाद उस पर पुनः तीन इंच मोटी कम्पोस्ट परत बिछाकर उस पर बाकी बचे बीज की मात्रा बिखेर दें और आखिर में उस पर कम्पोस्ट की पतली परत बिछा देते है !

बीज को रखने में सावधानियां

खुम्ब का बीज अधिक तापमान पर शीघ्र नष्ट हो जाता है ! खुम्ब का बीज 40 डिग्री सैल्सियस तापमान पर 48 घंटे में मर जाता है ! इस तरह के बीज में सड़ने की बदबू भी आने लगती है ! बीज को गर्मियों में रात को लाना चाहिए ! 

हो सके तो थर्मोकोल शीट के बने डिब्बे में बोतलों या लिफाफों के बीच में बर्फ के टुकड़े रख कर लाएं ! बीज पर धूप नहीं लगनी चाहिए ! यदि बीज बस से लाएं तो बीज को आगे इंजन के पास न रखें !

बीज का भण्डारण

बीज कारण खुम्ब का ताजा बना हुआ बीज कम्पोस्ट में शीघ्र फैलता है ! खुम्ब शीघ्र निकलने शुरू हो जाते हैं तथा पैदावार भी अधिक मिलती है ! फिर भी कभी-कभी बीज भण्डारण करना जरूरी हो जाता है इसलिए खुम्ब के बीज का रेफ्रीजरेटर में ही भण्डारण करें ऐसा करने से 15-20 दिन तक बीज खराब नहीं होता !

फसल की देखभाल :

बिजाई के पश्चात थैलियों को खुम्बी कक्ष में रख दिया जाता है ! तत्पश्चात् थैलियों में पुराने अखबार ऊपर से बिछाकर उसको पानी छिड़क कर गीली करें ! कमरे में आर्द्रता बनाये रखने के लिए उसके फर्श तथा दीवारों पर भी पानी का छिड़काव करते रहें ! 

इस दौरान कमरे का तापमान 22-26 सें. तथा आर्द्रता 80-85 प्रतिशत रहनी चाहिए ! अगले 15-20 दिनों में खुम्बी का कवक जाल पूरी तरह कम्पोस्ट में फैल जाता है ! अतः कमरे को बंद ही रखना चाहिए !

परत चढ़ाना (केसिंग करना) :

कम्पोस्ट में जब कवक जाल पूरी तरह से फैल जाए तो इसके ऊपर पहले से तैयार की गई परत चढ़ाने वाली मिट्टी तैयार करने के लिए गोबर की सड़ी हुई खाद तथा बाग की मिट्टी की बराबर मात्रा छानकर अच्छी तरह मिलाएं ! 

इसको निर्जीवीकृत करने के लिए इसे फार्मेलीन ; 5 प्रतिशत अथवा भाव द्वारा उपचारित कर लेते हैं ! परत चढ़ाने के पांच-छह दिन बाद कमरे का तापमान 14-18 सें. के बीच स्थिर रखें ! 

इस बीच इसकी सापेक्ष आर्द्रता भी 80-85 प्रतिशत के बीच रहनी चाहिए ! खुम्बी के फलनकाय बनने तथा इसकी बढ़वार के लिए ताजी हवा तथा प्रकाश की जरूरत होती है ! इसलिए अब कमरे की खिड़की तथा रोशनदान खोल कर रखते हैं !

खुम्बी का फलना तथा उनकी तुड़ाई :

बोने के 35-40 दिन बाद अथवा कम्पोस्ट पर परत चढ़ाने के 15-20 दिन बाद, कम्पोस्ट में खुम्बी के सफेद फलनकाय दिखायी देने लगते हैं, जो अगले चार-पांच दिन में सफेद बटन के
आकार में बढ़ जाते हैं ! जब खुम्बी की टोपी कसी हुई अवस्था में हो एवं उसी समय खुम्बी को उंगलियों से हल्का-सा दबाकर घुमाकर तोड़ लेते हैं ! 

कम्पोस्ट की सतह से खुम्बी को चाकू से काटकर भी निकाला जा सकता है ! सामान्यतः एक फसल चक्र में छह-सात सप्ताह के दौरान खुम्बी पांच-छह फलश आते हैं ! 

उपज :

खुम्बी का उत्पादन बढ़िया मात्रा में निकलती है ! 100 कि. ग्राम कम्पोस्ट से 15-16 कि.ग्रा. खुम्बी प्राप्त की जा सकती है ! अगर कम्पोस्ट बनाने में कुछ गलत हो जाए या कोई कीड़ा या बीमारी लग जाये तो खुम्बी की फसल को आंशिक या पूरी तरह नुकसान भी हो सकती है !

भण्डारण खुम्बी तोड़ने के पश्चात् साफ पानी में अच्छी तरह धोयें ! उसके बाद 25-30 मिनट के लिए उनको ठण्डे पानी में भिगों दें ! वैसे खुम्बी को ताजा प्रायोग में लाना ही उत्तम रहता है किंतु आवश्यकता पड़ने पर फ्रिज में 50 सें. तापमान पर चार-पांच दिन के लिए इनका भण्डारण किया जा सकता है !

खुम्बी की बीमारिया लक्षण व् रोकथाम

यह ध्यान रहे कि खुम्ब में किसी प्रकार के | फफूदनाशियों व कीटनाशियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए खुम्ब लगाने से पहले या बाद में प्रयोग कर सकते हैं !

हरी फफूद :

हरी रंग फफूद एक बहुत ही सामान्य प्रतियोगी है जो किसी भी खुम्ब भवन में आ सकता है ! इस प्रतियोगी फफूद के खाद में आने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन मुख्यत यह खाद में पी.एच.कम होने की वजह से आ सकता है ! 

खाद अगर अच्छी तरह तैयार न हो तो भी यह प्रतियोगी फफूद आक्रमण करती है ! यदि बीज फैलते समय तापमान ज्यादा हो तो भी यह समस्या आ सकती है ! यदि बीज कच्चा हो तो भी बीज के दानों पर हरा फफूद आ जाता है !

लक्षण : 

कम्पोस्ट व केसिंग मिट्टी पर छोटे-छोटे हरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं ! ज्यादा प्रकोप होने पर तैयार खुम्ब पर भी फैल जाती है ! खुम्ब भूरा हो जाता है और उस पर हरी फफूद फैलने लगती है ! 

इस फफूद के छोटे से हिस्से में लाखों बीज (स्पोर्ज) बनते है जो आसानी से हवा द्वारा दूसरी जगह पर फैल जाते हैं ! इन बीजाणुओं से खुम्ब भवन में काम करने वालों के गले में एलर्जी भी हो सकती है !

उपचार : 

पिछले वर्ष के बचे हुए खाद को खुम्ब घरों से दूर ढेर लगाए व पोलीथीन की चादरों से ढकें ! कम्पोस्ट का सही ढंग से पाश्चुरीकरण करें व सफाई का विशेष ध्यान रखें !
मरे हुए खुम्बों को खुम्ब शैया से निकाल कर गड्ढे में दबायें !
जहां-जहां हरे धब्बे आए हो उन्हें निकाल कर 01 प्रतिशत बाविस्टिन के घोल का छिड़काव करें !

भूरा लेप (ब्राउन प्लास्टर):

भूरा लेप फफूद की समस्या सामान्यत बरसात के दिनों में देखी जाती है ! यह खाद में ज्यादातर तभी आता है जब खाद ज्यादा गीली हो और खुम्ब के कमरे में बीज फैलते समय ज्यादा तापमान हो ! अगर खाद में जिप्सम की कमी या निर्धारित मात्रा न डाली हो तो भी यह समस्या खाद में आ सकती है !

लक्षण : 

बीजित कम्पोस्ट या केसिंग परत पर आटे की तरह सफेद गोल घेरे दिखाई देते है जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं ! इसका रंग बाद में लोहे के जंग की तरह भूरा हो जाता है !
और पाउडर में तबदील हो जाता है ! इस पाउडर को हाथ में मलकर देखे तो यह बारीक कणीदार पाउडर प्रतीत होता है !

उपचारः

खुम्ब भवन में व खाद बनाते समय साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें ! कम्पोस्ट में निर्धारित मात्रा में जिप्सम मिलाना चाहिए व
अधिक मात्रा में पानी न डालें ! पीक हीटिंग से पहले व बाद में कम्पोस्ट ज्यादा गीला न हो ! जहां-जहां भूरे लेप के धब्बे आए हो उन भागों को हटा कर उन जगहों पर फारमोलीन या बाविस्टिन का 01 प्रतिशत छिड़काव करें !

पीली फफूदः

पीला फफूद कई तरह की फफूद की प्रजातियों से होता है ! कुछेक प्रजातियां ऐसी खाद में जिसमें नाईट्रोजन की मात्रा ज्यादा हो या मुर्गी की बीठ ज्यादा हो या पुरानी डाली गई हो तो उसमें यह फफूद काफी नुकसानदायक होती है और यह जब किसी केन्द्र पर पनप जाती है तो इसे खत्म करना मुश्किल हो जाता है !

लक्षणः

इस फफूद से खाद या कम्पोस्ट पर पीले रंग के धब्बे बनते है या कई बार पीली भूरी फफूद की परत बन जाती है जो किनारों पर सफेद तथा उभरी हुई होती है ! कई बार कम्पोस्ट और केसिंग मिट्टी के बीच में पीले-रंग की पट्टी सी बन जाती है ! जब समस्या पीले धब्बों के रूप में आती है, तो कई बार खाद से सल्फर जैसी दुर्गन्ध भी आती है !

उपचार:

कम्पोस्ट में मुर्गी की बीठ सही मात्रा में व ताजी डालें ! कम्पोस्ट का पाश्चुरीकरण सही ढंग से करें ! उत्पादन कक्ष व उसके आस-पास सफाई का विशेष ध्यान रखें ! खाद पर कैल्शियम हाइपोक्लोराईड 0.15 प्रतिशत घोल का छिड़काव किया जा सकता है !

सफेद लेप (व्हाइट प्लास्टर):

सफेद परत वाली प्रतियोगी फफूद खाद में सामान्यत तब आती है जब कम्पोस्ट का पीएच. मान 8. 0 या इससे ज्यादा होता है ! अन्य कारणों के अलावा खाद में अमोनिया की मात्रा भी खाद का पी. एच. मान बढ़ा देती है ! अतः तैयार खाद में अमोनिया की मात्रा एक से दो प्रतिशत के बीच होनी चाहिए !

लक्षणः

यह फफूद केसिंग मिट्टी पर आटे की तरह दिखाई देता है, और अन्य प्रतियोगी फफूद के विपरीत अन्त तक सफेद ही बनी रहती है !और खाद व केसिंग मिट्टी पर सफेद रंग की मोटी परत बन जाती है !

उपचारः 

कम्पोस्ट में पी.एच.7.0 से 7.5 के बीच में हो ! बीजाई करते समय यह सुनिश्चित कर ले कि कम्पोस्ट में अमोनिया की गंध नहीं हो ! फफूद की परत को हटा कर उस स्थान पर बाविस्टिन 01 प्रतिशत या थिरम 0.05 प्रतिशत घोल का छिड़काव दस दिन के अन्तराल पर करें ! |

आभासी ट्रफल : 


फरवरी-मार्च के महीनों में जब तापमान बढना शुरू होता है जब श्वेत बटन खुम्ब में यह फफूद आता है ! यह समस्या दूसरे गर्मी में लगने वाली बटन खुम्ब (एगोरिकस बाईटोरकस) में काफी गंभीर होती है ! 
यह माना जाता है कि जैसे ही स्पान फैलाव के समय तापमान 26 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है तो आभासी ट्रफल प्रतियोगी फफूद का अधिक प्रकोप होता है !
लक्षण :
शुरू में आभासी ट्रफल कम्पोस्ट पर गहरा सफेद कवक के रूप में दिखाई देता है ! जो बाद में सफेद दानेदार गुच्छों के रूप में नजर आने लगता है ! यह गुच्छे केसिंग मिट्टी के उपर बनते हैं ! आकार में अखरोट की गीरी के समान या इससे बड़े फफूद के बन जाते हैं ! बाद में हल्के भूरे रंग में तबदील हो जाते हैं और पाउडर के रूप में बदल जाते हैं !
उपचारः

आभासी ट्रफल से बचने के लिए उत्पादन कक्ष का तापमान बीज फैलाव के समय 25 डिग्री सैल्सियस व फसल के समय 20 डिग्री सैल्सियस से अधिक न होने दें ! सफाई का ध्यान रखें ! जिन थैलों में ट्रफल दिखाई दे उन्हें दूर फैंक दें !

जैतूनी हरा फफूदः 

जैतुनी हरा प्रतियोगी फफूद खाद में अक्सर तब आता है जब पीक हीटिंग के बादं खाद में आक्सीजन की कमी रही हो या पीक हीटिंग के समय खाद का तापमान 65 डिग्री सैल्सियस से उपर चला जाए !  

लक्षणः

जैतूनी प्रतियोगी फफूद ग्रसित कम्पोस्ट में बीजाई के समय ही खुम्ब जालों के फैलने का आभास होता है लेकिन यह जाला जल्दी ही खत्म हो जाता है और इन जगहों पर खाद काली नजर आती है ! ध्यान से खाद को देखने पर पता चलता है कि कम्पोस्ट के ऊपर छोटे-छोटे जैतूनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं !

उपचारः

खाद सही तरह तैयार होनी चाहिए ! खाद को पाश्चुरीकृत चैम्बर में भरते समय मुर्गी की बीठ नहीं डालनी चाहिए ! ध्यान रहें कि पाश्चुरीकरण के समय कभी भी खाद का तापमान 60 डिग्री सैल्सियस से ज्यादा न होने पाये !

गीला बबलः 

यह रोग भारतवर्ष में 1978 वर्ष में दर्ज किया गया ! लगभग 1996 तक इस रोग का प्रकोप लगभग शून्य के बराबर ही रहा लेकिन अचानक 1997 में हिमाचल के कुछ स्थानों पर व्यग्र रूप धारण कर लिया ! अगले दो से तीन वर्षों में उतरी भारत में बाकी राज्यों में भी यह बीमारी फैल गई ! यह रोग इतना भंयकर था कि कई खुम्ब की इकाईयां बन्द हो गई ! हरियाणा के यमुनानगर, करनाल, कुरुक्षेत्र व पानीपत में काफी देखी गई है !

लक्षण : 

गीला बबल, जैसा कि नाम से ही प्रतीत हो रहा है इस रोग से खुम्ब कुछ इस तरह से विकृत होता है कि वह पानी में बनने वाले बुलबुले की तरह हो जाता है ! 

खुम्ब विकृत हो जाते हैं और तना सूजा हुआ लगता है ! खुम्ब के ऊतकों में सड़न शुरू हो जाती है और इनके उपर रुईदार कवक नजर आता है ! अगले एक से दो दिन में यह विकृत खुम्ब हल्के भूरे या गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं ! 

इन सड़े हुए खुम्बों से भूरे रंग का द्रव्य निकलता है ! गीला बबल रोग के रोगाणु सामान्यत केसिंग मिट्टी द्वारा खुम्ब भवन में थैलों के उपर आता है ! ये रोगाणु जल्दी ही वहां उग आते है और छोटेछोटे उगते हुए खुम्ब इसकी लपेट में आ जाते है ! तो उन्हें यह रोगग्रस्त कर देते हैं !

उपचारः

केसिंग मिट्टी अच्छी तरह से रोगाणुमुक्त की जानी चाहिए ! भाप से कीटाणुमुक्त करने के बाद केसिंग मिट्टी पर 0. 5 प्रतिशत फारमोलीन के घोल का छिड़काव कर लेना चाहिए और इसके तुरन्त बाद मिट्टी को प्रयोग कर लेना चाहिए ! 

केसिंग मिट्टी डालने से पहले बाविस्टिन 01 प्रतिशत घोल का छिड़काव थैलियों पर करें ! बाविस्टिन का सात से दस दिन के अन्तराल पर दो से तीन छिड़काव करने चाहिए ! जो भी विकृत खुम्ब नजर आए उसे तुरन्त उखाड़ कर दो प्रतिशत फारमोलीन के घाले में डुबो कर दूर फेंक देना चाहिए ! खुम्ब भवन में मक्खियों की रोकथाम करनी चाहिए !

सूखा बबल :

यह बीमारी भारतवर्ष में 1973 में शिमला के आस-पास चायल व तारादेवी क्षेत्रों से दर्ज की गई थी और जैसे-जैसे खुम्ब का विकास दूसरे क्षेत्रों में हुआ यह बीमारी भारत के दूसरे राज्यों में भी दर्ज हुई !

लक्षण: 

इस बीमारी में शुरू में सफेद कवक के रेशे केसिंग मिट्टी के उपर आते है ! तना बीच में कटने लगता है और कई बार तने से छिलके निकलने लगते हैं ! टोपी की आकृति भी बिगड जाती है और यह एक ओर झुक जाती है !

उपचारः

खुम्ब कक्षों में सफाई का विशेष ध्यान रखें ! सूखा बबल ज्यादातर केसिंग मिट्टी द्वारा ही किसी खुम्ब इकाई या कमरे में आता है, इसलिए केसिंग मिट्टी सही ढंग से कीटाणुमुक्त की जानी चाहिए ! 

इस बीमारी का डाईथेन एम45 (0.2 प्रति) या बाविस्टिन 0.1 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करके उपचार किया जा सकता है ! इस बीमारी के बीज हाथों से चिपक जाते हैं और दूसरी थैलियों पर बीमारी फैल जाती है ! इसलिए विशेष सावधानी बरती जानी चाहिए ! 

खुम्ब की मक्खियां भी इस बीमारी को फैलती है ! इसलिए उनका भी उपचार किया जाना चाहिए !

जाली वाला रोग:

कोब वैब यानि जाली वाला रोग, भारतवर्ष में 1977 में शिमला और सोलन की कुछ खुम्ब इकाइयों में दर्ज किया गया ! | इस बीमारी का प्रकोप यमुनानगर जिले के खुम्बघरों में देखने को मिला है ! .

लक्षण : 

इस रोग में केसिंग मिट्टी की सतह पर सफेद-सलेटी रंग का कवक आता है ! जो बाद में लाल रंग का हो जाता है ! यह कवक छोटे-छोटे खुम्बों के ऊपर जो इसके नजदीक पैदा हो रहे होते हैं उन्हें ढक लेता है और उन पर जाला सा बना देता है ! 

जाले के नीचे आने वाले खुम्ब सड़ जाते है और बाद में जाला केसिंग मिट्टी पर आ जाता है तथा इसका रंग बदल कर लाल हो जाता है !

उपचारः 

यह रोग ज्यादा तापमान व अधिक नमी होने पर बड़ी तेजी से फैलता है इसलिए कमरे मे सही नमी रहनी चाहिए ! उत्पादन कक्ष में डाइथेन एम-45 का 0.15 प्रतिशत घोल या बाविस्टिन 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है !

भूरा धब्बा रोगः

यह सफेद बटन खुम्ब में बहुत ही ज्यादा जीवाणु के कारण लगने वाला रोग है ! यह रोग ज्यादा नमी और अधिक तापमान वाले खुम्ब गृहों में ज्यादा पाया जाता है !

लक्षण : 

शुरुआती प्रकोप होने पर इस जीवाणु जनित रोग में खुम्ब की टोपियों व तनों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो बड़े होकर और दो-तीन धब्बे आपस में मिलकर बड़ा धब्बा बना देते हैं ! इन धब्बों से चिपचिपा द्रव भी दिखाई देते हैं क्योंकि ये जीवाणु जनित रोग के लक्षण है ! 

छोटी छोटी पनपती खुम्ब कलिकाएं भी भूरी हो कर मर जाती हैं ! खुम्ब की पैदावार व गुणवत्ता में कमी के साथ-साथ खुम्ब की टोपियों पर भूरे धब्बों के कारण बाजार में बेचना भी मुश्किल हो जाता है !

रोकथाम :

खुम्बगृह का तापमान 20 डिग्री सैल्सियस से ज्यादा न हो ! थैलों व रैकों में नमी ठीक बनाए रखें, क्योंकि यह रोग खुम्बगृहों में अधिक नमी व अधिक तापमान के कारण ज्यादा फैलता है ! 

पानी छिड़काव करने के बाद खुम्बगृहों के दरवाजे थोड़ी समय के लिए खुला रख कर ताजी हवा जरूर दें ताकि खुम्बों की टोपियों से पानी की सतह उड़ जाए ! 

केंसिग मिट्टी को अच्छी तरह निर्जीविकरण करें ! रोग के लक्षण दिखाई देने पर जीवाणुनाशक जैसे स्ट्रोप्टोसाइक्लिन का छिड़काव रोगग्रसित स्थानों पर ही करें ! रोग ग्रस्त खुम्बों को निकाल कर क्लोरीन वाले पानी (ब्लीचिंग पाउडर 0.15 प्रतिशत) का बीच-बीच में छिड़काव करते रहें !

Pyaz ki unnat kisme नर्सरी में प्याज की पौध कैसे तैयार करे


                     नर्सरी में प्याज की पौध कैसे तैयार करे

प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी एवं मसाले की फसल है। यह प्रोटीन और कुछ विटामिन से भरपूर सब्जी है जिसमें अनेक औषधीय गुण भी पाए जाते हैं।

इनका उपयोग अचार, सलाद, सुप इत्यादि के रूप में भी किया जाता है। भारत में प्याज की खेती लगभग सभी राज्यों में की जाती है परंतु महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू एवं बिहार प्रमुख हैं।

यह भारत से सबसे ज्यादा मात्रा में निर्यात होने वाली फसल है। प्याज ठण्डे मौसम की फसल है लेकिन इसे खरीफ में भी उगाया जा सकता है। प्याज के अंतर्गत क्षेत्रफल का लगभग 60% रबी के मौसम में ही लगाया जाता है।

प्याज की उन्नत किस्में

पंजाब सलेक्शन, पूसा माधवी, पूसा रतनार, पंजाब सफेद, अर्का कल्याण, पूसा रेड, पूसा सफेद फ्लेट, बसवंत 780, एग्रीफॉउन्ड लेत रेड, अर्का निकेतन।

हिसार-2, पूसा रेड, हिसार प्याज-3, हिसार प्याज-4 को रबी के मौसम में लगाया जा सकता है।

सामान्यतः रबी प्याज की पौध पहले नर्सरी में लगाई जाती है फिर उनकी रोपाई की जाती है।

नर्सरी में प्याज की पौध तैयार करने के कुछ पहलू इस प्रकार हैं :

> 4-5 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज को कतारों में 4-5 सें.मी. के फासले
पर लगाते हैं।

> नर्सरी तैयार करने के लिए चयनित भूमि में 2 जुताई करके समतल
क्यारियां व सिंचाई के लिए नालियां बना दी जाती हैं।

> क्यारियों की चौड़ाई 60 से 100 सें.मी. व लम्बाई को सुविधा के अनुसार रखा जा सकता है।

> एक एकड़ के लिए 50 से 60 क्यारियां (3x1मी.) पर्याप्त रहती हैं।

> बिजाई से पहले बीज को थाइरम (2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित करें। आर्द्रगलन से पौधों को बचाने के लिए यह उपयुक्त है।

> नर्सरी के लिए चयनित भूमि का उपचार भी इसी दवा से करें। 4-5 ग्राम
प्रति वर्गमीटर की दर इसके लिए उपयुक्त है।

> बिजाई के पश्चात् बीज को सड़ी तथा छनी बारीक गोबर की खाद या
कम्पोस्ट से ढकें।

> इसके बाद फव्वारों की मदद से प्रतिदिन हल्की सिंचाई बीज अंकुरित होने तक करते रहें। पौधों के बड़े होने पर समय-समय पर नालियों द्वारा खुला पानी दिया जा 
सकता है।

> पौध बिजाई के 6 से 8 सप्ताह बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।

> रोपाई समय पर करें अर्थात अधिक दिनों के बाद रोपाई करने पर पौधे
जल्दी व्यवस्थित नहीं हो पाते हैं और उनमें फूल वाले डंठल अधिक निकलते हैं।

> अक्तूबर से मध्य नवम्बर में बिजाई की गई फसल रोपाई के लिए मध्य दिसम्बर से मध्य जनवरी तक तैयार हो जाती है।

> पौधे की रोपाई करते समय कतारों की दूरी 15 सें. मी. तथा कतारों में
पौधों की दूरी 10 सें. मी, रखें। रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।