Gram cultivation in India in hindi - Chane ki kheti


                             चने की अच्छी पैदावार कैसे लें?


रबी की दलहनी फसलों में चना एक महत्वपूर्ण फसल है ! चने की फसल को हरियाणा में 100 हजार हैक्टेयर से भी जयादा क्षेत्र में उगाया जाता है ! यदि पिछले 2-3 साल से देखा जाये तो पता चलता है कि दलहनी फसलों की कीमतों में अपार वृद्धि हुई है ऐसी अवस्था में यदि किसान उचित पैदावार लें तो चने की खेती से फायदा होता है ! लेकिन यह देखा गया है कि किसान भाई चने की काश्त पर उचित ध्यान नहीं देते जिसके कारण कम पैदावार होती है ! अच्छी चने की खेती के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:-
                                

मिट्टी-


चने की अच्छी फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी का होना अति आवश्यक है ! ऐसे क्षेत्र मिट्टी जो खारी कल्लर हो और जिनका पी एच 8.5 से अधिक हो चने की फसल के लिए उपयुक्त नहीं होती ! ऐसी जमीन जिसमें सेम की समस्या हो बिल्कुल उपयुक्त नहीं होती ! चने की अच्छी फसल के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट, रेतीली तथा हल्की मिट्टी होती है !

खेत की तैयारी

चने की काश्त में खेत की तैयारी का अपना एक महत्व है ! बारानी क्षेत्र में जल संरक्षण बहुत ही आवश्यक है ! ऐेसे क्षेत्रों में जुलाई/अगस्त महीने मेें एक गहरी जुताई डिस्क या मोल्ड बोर्ड हल से करें जिससे कि वर्षा का पानी जमीन सोख ले ! खेत को प्रत्येक अच्छी वर्षा के बाद चलायें और सुहागा अवश्य लगायें ! ऐसा करने से खेत में नमी बनी रहेगी ! सिंचित क्षेत्रों में खेत को एक बार हैरो चलाकर पानी लगायें और बतर आने पर खेत में दो बार हैरो चलायें और सुहागा लगायें ! बिजाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए !

किस्म



अधिकतर देखने में आया है कि किसान भाई घर में रखे चने को ही बिजाई के लिए प्रयोग करते हैं लेकिन विभिन्न जलवायु केे लिए अलग-अलग किस्में उपलब्ध है ! इसीलिए यही किस्में लेने से अधिक पैदावार मिलती है ! निम्नलिखित किस्मों को अपने संसाघनों की उपयुक्त के अनुसार चुनाव करें जिससे वे अधिक पैदावार प्राप्त हो और ज्यादा फायदा हो ! किस्में निम्न प्रकार से हैं:-

एच 208

यह किस्म बारानी इलाकों के लिए सबसे उतम उखेड़ा अवरोधी है ! यह सिंचित क्षेत्रों के लिए भी अच्छी साबित हुई है ! इसकी फलियाँ छोटे आकार की दो दानों वाली होती है ! दाना छोटा (11.5 ग्राम/100 दाना) भूरे पीले रंग का होता है ! इसकी औसत पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है !

C-235

यह किस्म चांदनी नामक बीमारी अवरोधी है और मुख्यतः चांदनी वाले इलाकों में जहाँ आद्रता ज्यादा हो उगाई जाती है ! वैसे बारानी इलाकों में भी अच्छी पैदावार होती है ! दाना मध्यम आकार (13.5 ग्राम/100 दाने ) का भूरे पीले रंग का होता है ! इसकी औसत पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ है !

हरियाणा चना .-1

इस किस्म के बीज हल्के पीले रंग के मध्यम आकार के चोंचदार होते हैं ! यह किस्म मुख्यतः देर से बिजाई के लिए उपयुक्त है क्योंकि यह पकने में 145 दिन लेती है और जल्दी पकने वाली हाने के कारण इसमें फली छेदक कीड़ा भी कम नुकसान कर पाता है ! इसकी औसत पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ है !

हरियाणा चना .-3

यह किस्म चने की मुख्य बीमारियों, उखेड़ा, चांदनी, जड़सन आदि से अवरोधी है ! यह किस्म 160 दिन में पक कर तैयार हो जाती है ! इसका दाना मोटा (26.5 ग्राम/दाने ) होता है ! इसकी औसत पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ है ! यह किस्म सिंचित क्षेंत्रों में नवम्बर के प्रथम सप्ताह में बोने से अच्छी पैदावार देती है !

हरियाण चना .-5

इस किस्म के पौधे सीधे बढ़ने वाले लम्बे तथा अधिक पैदावार वाले होते हैं ! यह किस्म उखेड़ा जलड़ गलन जैसे रोगों से अवरोधी हैं ! यह 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है ! इसका दाना मध्यम (16 ग्राम/100 दाने) आकार वाला भूरे पीले रंग का होता है ! यह सिंचित इलाकों के लिए भी उपयुक्त किस्म है ! इसकी औसत पैदावार 9-10 क्विंटल प्रति एकड़ है !

हरियाण काबली-1

इस किस्म के पौधे मध्यम उँचाई सघन शाखाओं और अधिक फलियों वाले होते हैं ! पौधों का रंग हल्का हरा होता है ! यह किस्म 142 दिन में पककर तैयार हो जाती है ! दाने मध्यम (20 ग्राम/100 दाने ) आकार के होते हैं ! यह किस्म सिंचिंत इलाकों के लिए सिफारिश की गई है ! इसमें उखेड़ा रोग नहीं लगता ! इसकी औसत पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है !

हरियाणा काबली-2

यह मोटे दाने वाली (28 ग्राम/100 दाने) की किस्म है ! जिसकी चैड़ी पतियां गहरे हरे रंग की होती हैं ! यह 142 दिन में पक कर तैयार हो जाती है और औसतन 6 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार देती है ! इसमें उखेड़ा रोग नहीं लगता !

बिजाई का समय

उपयुक्त समय पर बिजाई करने से अधिक पैदावार मिलती है ! बारानी क्षेत्रों में बिजाई का उपयुक्त समय मध्य अक्तूबर है ! किसान भाई यह ध्यान रखें कि यदि बिजाई के  समय तापमान 300 सैंटीग्रेट से अधिक है तब उखेड़ा रोग सकता है और पौधों की संख्या भी कम हो जाती है जिससे पैदावार पर असर पड़ता है इसलिए तापमान 30 डिग्री सैंटीग्रेड से नीचे जाने पर ही बिजाई करें ! काबुली चने की बिजाई का उतम समय (नवम्बर के शुरू के सप्ताह ही है ) !

सिंचित क्षेत्रों में चने की बिजाई नवम्बर के दूसरे तीसरे सप्ताह में करें ! सिंचित क्षेत्रों में चने की किस्म हरियाणा चना नं. 1 दिसम्बर के मध्य तक कर सकते हैं जिसकी पैदावार में बहुत ज्यादा कमी नहीं आती !

बीज की मात्रा

समय से बारीक दाने वाली देसी चने की बिजाई के लिए 15-18 किलो प्रति एकड़ बीज पार्याप्त है ! परन्तु मोटे दाने वाली किस्में जैसे हरियाणा चना नं. 3 गौरव के लिए 30-32 किलो प्रति एकड़ चाहिए ! पर्याप्त मोटे दाने वाली काबली चने की किस्मों के लिए 36 किलो प्रति एकड़ गोरा हिसारी और हरियाणा काबुली नं. 1 जैसी किस्मों के लिए बीज की मात्रा 24-26 किलो प्रति एकड़ का भी है ! पछेती बिजाई के लिए बीज की मात्रा 25 प्रतिशत बढ़ा कर बोने से पैदावार अच्छी मिलती है ! 

बीज की मात्रा

समय से बारीक दाने वाली देसी चने की बिजाई के लिए 15-18 किलो प्रति एकड़ बीज पर्याप्त है ! परन्तु मोटे दाने वाली किस्में जैसे हरियाणा चना नं. 3 गौरव के लिए 30-32 किलो प्रति एकड़ चाहिए ! पर्याप्त मोटे दाने वाली काबली चने की किस्मों के लिए 36 किलो प्रति एकड़ गोरा हिसारी और हरियाणा काबुली नं. 1 जैसी किस्मों के लिए बीज की मात्रा 24-26 किलो प्रति एकड़ का भी है ! पछेती बिजाई के लिए बीज की मात्रा 25 प्रतिशत बढ़ा कर बोने से पैदावार अच्छी मिलती है !
                                    
 

बीज उपचार

अच्छी पैदावार के लिए बिजाई से पहले बीज उपचार अवश्य करें ! बीज उपचार निम्न तरीकें से क्रमबद्ध करें:-

1.बरानी क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप आधिक होता है ! इसकी रोकथाम के लिए 850 मिलीलीटर एण्डोसल्फान 35 .सी./ मोनोक्रोटोफाॅस 36 एस एल. या 1500 मि.ली क्लोरपाइरीफाॅस 20 .सी. को पानी मे मिलाकर दो लीटर घोल बना लें ! फिर एक क्विंटल बीज पर छिड़कें तथा बीज को एकसार उपचारित करने के लिए अच्छी तरह मिलाएं ! बीज को बोने से पूर्व रात भर पड़ा रहने दें !

2.उखेड़ा रोग के उपचार के लिए बिजाई से पूर्व बीज का उपचार बाविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना बहुत अच्छा रहता है !

3.दीमक और उखेड़ा के उपचार के बार आखिर में चने की अच्छी पैदावार लेने के लिए बिजाई से पहले बीज का राइजोबियम के टीके से उपचार करें ! इस उपचार से जड़ों में ग्रंथियां अच्छी बनती हैं ! इसके लिए 50-60 ग्राम गुड़ को दो कप पानी में घोल लें ! फिर इस घोल को एकड़ के बीज में मिला दें ! इसके बाद चने के टीके के छिड़क कर हाथ से मिलायें ताकि काला पाउडर बीजों पर अच्छी तरह लग जाये और बीज को छाया में सुरक्षा दें ! 

बिजाई की विधि

ऐसे क्षेत्र जहाँ पर पहले बाजरे की फसल ली हो यो फिर हल्की से मध्यम भूमि हो या फिर जहां नमी कम हो ऐसे स्थानों पर चने की बिजाई 45 सैं.मी. चैड़ी पंक्तियों में करें ! ऐसी भूमि जिन में नमी की मात्रा पर्याप्त हो और सिंचाई की सुविधा हो वहां पर पंक्तियों की चैड़ाई एक फूट (30 सैं.मी.) रखें ! चने की बिजाई पंक्ति (30/60 सैं.मी.) में भी की जाती है  ! दो पंक्तियों के बीज की दूरी 30 सै.मी. तथा दोहरी कतारों में आपसी दूरी 60 सैं.मी. रखनी चाहिए !

खाद एवं उर्वरक

12 किलोग्राम यूरिया और 100 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेद या फिर 35 किलोग्राम डाई अमोनियम फास्फेट को प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई के समय ड्रिल कर दें ! ध्यान रहे खाद को बीज के साथ मिलाएं ! आमतौर पर यह दखने मे आया है कि बारानी क्षेत्रों में जहां किसान भाई खाद नहीं डालते वहां पैदावार में काफी कमी आती है ! ऐसे क्षेत्रों में चने मेें फूल आने के समय दो प्रतिशत यूरिया का स्प्रे कर सकते हैं और एक स्प्रे फिर 10 दिन बाद करने से पैदावार अधिक होती है !

सिंचाई

चने में सिंचाई की आवश्यकता वर्षा पर निर्भर करती है ! यदि खेत में नमी की हो तो सिंचाई करने से पैदावार में वृद्धि होती है ! फूल आने के समय यदि नमी की कमी नजर आये तब फूल आने सेे पहले एक सिंचाई करनी चाहिए ! यदि फसल की बिजाई पलेवा करने के बाद की गई है और वर्षा होने की अवस्था में एक सिंचाई टाट (फलियां) विकसित होते समय करें ! ध्यान रखें कि भारी सिंचाई करें ! गेहूं-धान फसलचक्र वाले क्षेत्र में चने की सिंचाई करें ! यदि पानी है तब भी सिंचाई करें

कीड़े उनकी रोकथाम

चने में निम्नलिखित कीड़ों का प्रकोप होता है ! उनकी रोकथाम समय पर अवश्य करें:-
कटुआ सुण्डीः इस कीट की सुण्डी उगते हुए पौधों को तने के बीज में अथवा बढ़ते पौधों की शाखाओं को काटकर नुकसान पहंचाती है ! इसकी रोकथाम के लिए 80 मि.ली. फेनवालरेट 20 .सी. को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें या 0.4 प्रतिशत फेनवालरेट पाउडर 10 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से धूड़ें !
फलीछेदक सुण्डीः इस कीट की सुण्डी पतों. कलियों. टाट को नुकसान पहंचाती है, फलियों में बन रहे दानों को खाती हैं ! इसका नुकसान बहुत ज्यादा होता हैा इसकी रोकथाम समय पर करें ! जब 50 प्रतिशत टाट बन जाय, उस समय 400 मि.ली. एण्डोसल्फान 35 इे.सी. या 200 मि.ली. मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. का 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें ! यदि आवश्यकता समझें तो दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद करें !

बीमारियाँ रोकथाम

उखेड़ा: चने में दो बार सकती है ! एक बिजाई के 3-6 सप्ताह बाद और दूसरी जब फरवरी-मार्च में गर्मी शुरू होती है तब भी यह बीमारी सकती है ! यह बीमारी के 3-6 सप्ताह बाद दिखाई देती है ! पौधे की पतियां मुरझा कर लुढ़क जाती है ! परन्तु उनमें हरापन बना रहता है ! इसकी रोकथाम के लिए रोगरोधी/सहनशीकल किस्में जैसे एच 208, चना नं. 1. चना नं. 3 हरियाणा चना नं. बोयें ! बीज उपचार जैसे कि पहले दिया है अतश्य करें ! यदि अधिक गर्मी है तो 10 अक्तूबर से पहले बिजाई करें !

                  छलहन अनुभाग, पौध प्रजनन विभाग
                चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय

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