लहसुन के उत्पादन की उन्नत विधि
लहसुन प्याज के बाद दूसरी मुख्य कंद वाली फसल है ! इसका प्रयोग मुख्य रूप से मसाले व अचार आदि बनाने के लिए किया जाता है ! दैनिक प्रयोग में इसकी खपता होने के कारण यह एक अधिक महत्व वाली फसल हो गई है !
लहसुन की पौष्टिकता व आर्थिक महत्व को देखते हुए हरियाण में इसकी खेती का क्षेत्रफल व पैदावार पहले से काफी बढ़ गई है ! इसलिए प्रति एकड़ अधिकतम पैदावार लेने के लिए निम्नलिखित कृषि क्रियाओं को ध्यान में रखना अति आवश्यक है !
लहसुन की पौष्टिकता व आर्थिक महत्व को देखते हुए हरियाण में इसकी खेती का क्षेत्रफल व पैदावार पहले से काफी बढ़ गई है ! इसलिए प्रति एकड़ अधिकतम पैदावार लेने के लिए निम्नलिखित कृषि क्रियाओं को ध्यान में रखना अति आवश्यक है !
उन्नत किस्म
जी-1:
यह किस्म संघीय कृषि विकास प्रतिष्ठान द्वारा निकाली गई है ! गांठे माध्यम आकार की सफेद व सुगठित होती है ! कालियाँ प्रति गांठ 15-20 होती है ! फसल 160-180 दिन में तैयार हो जाती है ! औसतन पैदावार 40 से 44 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है !भूमि की तैयारी
लहसुन की बिजाई सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है ! लेकिन भारी चिकनी व अम्लीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं होती क्योंकि इसमें बल्ब अच्छे नहीं बनते व लहसुन की खुदाई भी ठीक ढंग से नहीं होती ! बिजाई से 15 दिन पहले खेत की 2-3 जुताई करके खेत की तैयार करनी चाहिए !
बिजाई का समय व बीज की मात्रा
सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से अक्तूबर तक लहसुन की बिजाई की जा सकती है ! बिजाई के लिए लगभग 1.5 से 2 क्विंटल/एकड़ स्वस्थ कलियाँ पर्याप्त होती है !
बिजाई की विधि
बिजाई के समय कलियाँ को लाइनों से लाइन में 15 सै.मी. तथा पौधे से पौधे 10 सैं.मी. की दूरी देते हुए लगभग 5-6 सैं.मी. गहरी बिजाई करते हैं ! कलियों का नुकीला भाग हमेशा उपर की और रखना चाहिए व बिजाई के बाद कलियों को 2 सैं.मी. गहरी मिट्टी की तह से ढ़क देना चाहिए !
खाद व उर्वरक
20 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से खेत की तैयारी करते समय खेत में अच्छी तरह मिला दे ! 16 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम व 10 किलोग्राम पोटाश बिजाई के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें ! शेष 16 किलोग्राम नाइट्रोजन की खाद बिजाई के 60 दिन के अन्दर ही दे देनी चाहिए अन्यथा पतियों की अधिक वृद्धि से गांठों का आकार छोटा और कलियाँ पतली हो जाती हैं !
सिंचाई
लहसुन की बिजाई के तुरन्त बाद या एक दो दिन बाद हल्की सिंचाई करें ! सर्दियों में 10-15 दिन के अन्दर पर तथा गर्मियों में 7 दिन के अन्तर पर सिंचाई करें ! फसल के पकने के समय जमीन में अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए अन्यथा पतियों की वृद्धि पुनः प्रारम्भ हो जाती है और कलियों में अंकुरण हो जाता है जिससे इसकी भण्डारण क्षमता कम हो जाती है !
निराई गोड़ाई व खरपतवार नियन्त्रण
अच्छी फसल के लिए 2-3 बार शुरू में निराई गुड़ाई की आवश्यकता होती है ! लहसुन की जड़ें कम गहराई तक जाती हैं ! अतः 2-3 बार उथली गुड़ाई करके खरपतवार निकाल देने चाहिएं !
खरपतवारों की रोकथाम के लिए खरपतवारनाशक दवाओं का प्रयोग भी किया जा सकता है ! फ्लुक्लोरालिन 400 ग्राम (बासालिन 45 प्रतिशत 900 मि.ली. प्रति एकड़) का घोल 250 लीटर पानी में बनाकर बिजाई से पहले छिड़काव करके मिट्टी में मिला दें !
या
पैण्डीमैथालिन 400-500 ग्राम/एकड़ (स्टोम्प 30 प्रतिशत 1.3-1.7 लीटर/एकड़) का 250 लीटर पानी में घोल बनाकर बिजाई के 8-10 दिन बाद जब पौधे सुव्यवस्थित हो जाए और खरपतवार निकलने लगे तो छिड़काव करें !
दवाओं के छिड़काव के 50-60 दिन बाद यदि कुछ खरपतवार पुनः निकल आए तो एक निराई करना लाभप्रद होता है !
खरपतवारों की रोकथाम के लिए खरपतवारनाशक दवाओं का प्रयोग भी किया जा सकता है ! फ्लुक्लोरालिन 400 ग्राम (बासालिन 45 प्रतिशत 900 मि.ली. प्रति एकड़) का घोल 250 लीटर पानी में बनाकर बिजाई से पहले छिड़काव करके मिट्टी में मिला दें !
या
पैण्डीमैथालिन 400-500 ग्राम/एकड़ (स्टोम्प 30 प्रतिशत 1.3-1.7 लीटर/एकड़) का 250 लीटर पानी में घोल बनाकर बिजाई के 8-10 दिन बाद जब पौधे सुव्यवस्थित हो जाए और खरपतवार निकलने लगे तो छिड़काव करें !
दवाओं के छिड़काव के 50-60 दिन बाद यदि कुछ खरपतवार पुनः निकल आए तो एक निराई करना लाभप्रद होता है !
फसल की कटाई
गांठों के पूर्ण विकसित होने पर व पौधें की पतियों में पीलापन आने व सूखने शुरू होने पर सिंचाई बन्द कर दें ! खुदाई के बाद गांठों को 3-4 दिन तक छाया में सुखाने के बाद पतियों को गर्दन से 2-3 सैंटीमीटर छोड़कर काट दें या 25-50 गांठों की पत्तियों को बांधकर गुच्छियाँ बना लें ! लहसुन का भण्डारण शुष्क हवादार एवं अंधेरे कमरे में करना चाहिए !
सब्जी विभाग
चैधरी चरण सिंह हिरयाणा कृषि विश्विद्यालय
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