वैज्ञानिक विधि द्वारा चप्पनकद्दू की खेती
उत्तरी भारत की मंडियों में इसके फल
अप्रैल-मई तक उपलब्ध होते हैं, परन्तु पाले के प्रति
अत्यधिक प्रतिरोधी होने के कारण चप्पनकद्दू को दिसम्बर-जनवरी में उगाकर इसके फलों
को फरवरी-मार्च में प्राप्त कर सकते हैं।
चप्पनकद्दू के फल गोलाकार/अण्डाकार होते
हैं। इसके फलों को हरे एवं अपरिपक्व रूप में पका कर खाया जाता है। इसे उत्तर भारत
में अधिकतर हरियाणा, पंजाब, उत्तर
प्रदेश व दिल्ली में उगाया जाता है। वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने से हम चप्पनकद्दू
की उत्तम फसल प्राप्त कर सकते हैं।
उन्नत किस्म
पंजाब चप्पन कदू-1 :
यह जल्दी पकने वाली
किस्म है जो बिजाई के 60 दिनों बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है ! इस किस्म के
पौधे के पत्ते घने और हरे रंग के होते है ! फल हरे रंग के डिस्क आकार के होते है !
इसके फलो की पैदावार 90 क्विंटल प्रति एकड़ होती है !
काशी सुभांगी ( वी.आर.एस.एस.-06-12) :
फल की
लम्बाई 68-75 cm होती है तथा गोलाई 21-24 cm होती है ! इस प्रजाति में 8-10 फल
प्रति पौधे लगते है ! कच्चे फल का रंग हरा, लम्बा आकार, बेलनाकार तथा फल पर हलकी
7-8 धरिया पर वजन 800 से 900 ग्राम होता है ! ये किस्म 130 से 140 क्विंटल प्रति
एकड़ की पैदावार देती है !
पूसा अलंकार :
यह एक अगेती संकर जाति है।
इसके पौधे झाड़ीनुमा होते हैं। फल गहरे रंग के हल्की धारियों वाले 20-25 सें.मी. लम्बे होते हैं।
चन्द्रिका :
जल्दी तैयार होने वाली हाइब्रिड
किस्म है जो की 35 से 38 दिन में तैयार हो जाती है ! फल गोल होते है और वजन 150 से
200 ग्राम होता है !
जलवायु
चप्पनकद्दू की खेती के लिए गर्म जलवायु
सर्वोत्तम रहती है, परन्तु पाले या कोहरे के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी
होने के कारण इसे कम तापमान पर भी उगाया जा सकता है। इसकी काश्त के लिए सर्दियों
में नमी का मौसम अनुकूल रहता है।
भूमि और उसकी तैयारी
यद्यपि चप्पनकडू को किसी भी प्रकार की
मिट्टी में उगाया जा सकता है, फिर भी काफी खाद मिली हुई
दोमट एवं उपजाऊ बलुई मिट्टी इसके लिए उत्तम रहती है।
पथरीली या पानी जमा हो जाने
वाली मिट्टी इसके लिए ठीक नहीं रहती, क्योंकि इस प्रकार की
भूमि में पौधों का विकास रुक जाता है। अच्छी उपज के लिए खेत की तीन-चार जुताइयाँ
करके सुहागा लगायें।
बुवाई का समय व बीज दर
चप्पनकद्दू की बताई शरद्कालीन फसल के रूप
में नवम्बर-दिसम्बर के महीने में की जाती है। उत्तरी भारत में प्रायः कोहरे के समय
बुवाई करने से अगेती फसल प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु पौधों
की अगेती जमाव व बढ़वार के लिए कोहरे से रक्षा करना आवश्यक है। इसके लिए बुवाई के
पश्चात् जमीन को मोमी चद्दर से ढ़क देना चाहिए ताकि उच्च तापमान से जल्दी जमाव हो
जाए। एक एकड़ भूमि के लिए लगभग डेढ़ से दो किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है।
बुवाई का ढंग
चप्पनकद्दू की बुवाई का ढंग अन्य कद्दू वगीय
सब्जियों से भिन्न है। इसकी बवाई के लि 80 सें.मी. चौड़ी
और ऊँची क्यारियाँ बनानी चाहिएँ। क्यारियों के बीच में 30-40 सें.मी. चौड़ी नाली रखते हैं। नाली के दोनों सिरों पर 50 सें.मी. की दूरी पर बुवाई करते हैं। एक स्थान पर 2-3 बीज को 2-3 सें.मी. की गहराई पर बुवाई करनी चाहिए।
बुवाई के पश्चात् उस जगह को मोमी चद्दर से ढक देना चाहिए जिससे बीज का जमाव तथा
पौधों की बढ़ोतरी शीघ्र होती है। जमाव के पश्चात मोमी चद्दर को हटा देना चाहिए।
जमाव हो जाने पर एक स्थान पर एक या दो ही
स्वस्थ पौधे रखते हैं। अच्छे जमाव के लिए बीजों को 2 प्रतिशत
नमक के घोल में 6-8 घंटों के लिए भिगो दें। इसके पश्चात्
बीजों को साफ पानी से धो लें।
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