किन्नू की खेती
भारत को नींबू वर्गीय फलों का घर माना जाता है फलों में नींबू वर्गीय फलों का महत्वपूर्ण स्थान है भारत में नींबू प्रजातीय फलों का प्रमुख स्थान है उतर भारत में नींबू वर्गीय फलों में किन्नों की खेती प्रमुख है !
इसकी खेती हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व हिमाचल प्रदेश में की जाती है किन्नो की खेती हमारे देश में 1959 में अबोहर, पंजाब से शुरू हुई स्वास्थ्य की दृष्टि से किन्नो फल मनुष्य के लिए अत्यन्त लाभदायक है !
इसमें विटामिन ’सी’
भरपूर मात्रा में पाया जाता है इसके अलावा विटामिन ’ए’, ’बी’
तथा खनिज तत्व भी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं
किन्नो अधिक उत्पादन देने वाली शंकर किस्म है जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका में किंग आॅरेंज और विलो लीफ आॅरेंज के संकरण से विकसित किया गया है किन्नो का रस रक्त वृद्धि, हड्डियों की मजबूती तथा पाचन में लाभकारी होता है !
इसमें खटास व मिठास का अच्छा सन्तुलन है फल का छिलका मोटा तथा गूदे से चिपका हुआ होता है परन्तु इसे संतरे की तरह गूदे से आसानी से अलग किया जा सकता है !
किन्नो का फल संतरे से बड़े आकार का होता है फल मध्यम, गोल,
चपटापन लिए हुए नारंगी रंग के व फल का वनज 125-175 ग्राम होता है पकने पर छिल्का नर्म व चमकदार तथा गूदा गहरा नारंगी पीलाख् रस 40-45 प्रतिशत, सुगन्ध बहुत अच्छी, घुलनशील तत्व (मिठास) 9-12 प्रतिशत व खटास 0.75 से 1.2 प्रतिशत होता है फल जनवरी माह मे पकता है उत्पादन 80-100 क्विंटल प्रति एकड़ है!
किसान किन्नो की खेती से 60,000-70,000 रूपये तक प्रति एकड़ कमा सकतेे है इसलिए किन्नो की खेती का क्षेत्रफल बढ़ने की बहुत सम्भावनाएं है !
किन्नो के पौधे तैयार करना
मूलवृन्त तैयार करना
मूलवृन्त (बीजू पौधा) तैयार करने के लिए जट्टी-खट्टी के बीज निकालकर सितम्बर-अक्तूबर में इसकी बीजाई की जाती है इसकी बुआई ऊंची उठी क्यारी में की जाती है जो कि 2-3 मीटर लम्बी, दो फुट चोड़ी व आधा फुट जमीन से ऊंची होती है !
बीजाई के 3-4 सप्ताह के बाद अंकुरण हो जाता है छोटे पौधों को शीत लहर व पाले बचाने के लिए सूखी घास का छप्पर बनाकर रात का ढक दे तथा दिन में हटा ले समय≤ पर सिंचाई व गुड़ाई करते रहना चाहिए
मूलवृन्त की रोपाई
जब ये पौधे 15 से.मी. ऊंची हो जाए तो इन्हें बढ़ी क्यारियों में 15 सै.मी. पौधे से पौधे की दूरी, एक फूट लाईन से लाईन की दूरी व दो लाईनों बीच दो फुट के फासले पर लगाया जाता है इसमें सिंचाई, खरपतवार व कीड़े तथा बीमारियों का प्रबन्ध ठीक तरह से रखे जब ये पौध पैंसिल की मोटाई की होती जाती है तब इन बीजू पौधो पर किन्नो का कलिकायन या चश्मा ’टी’ विधि द्वारा किया जाता है !
कली लगाने के 2-3 सप्ताह बाद कली फूटने लगती है तब यह कली 15 से.मी. की हो जाए तो उस समय कलिकायन के स्थान के ऊपर से मूलवृन्त का भाग तेज चाकू से काट दें जब यह शाखा 30-45 से.मी. की हो जाए तो रोपाई योग्य हो जाती है
पौधे लगाने का समय
किन्नो के पौधे फरवरी-मार्च तथा अगस्त से अक्तूबर में लगाए जाते है पौधों को बिल्कुल सीधा लगाना चाहिए ताकि उनकी जड़े स्वाभाविक अवस्था में रहे
भूमि पर जलवायु
किन्नो की खेती उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों जहां पर सर्द तथा ग्रीष्म ऋतु में की जाती है औसत वर्षा 50-60 से.म. होनी चाहिए परन्तु सिंचाई का उचित प्रबंध होना आवश्यक है किन्नो के लिए गहरी जल निकासी वाली दोमट व उपजाऊ भूमि जिसमें 2 मीटर गहराई तक किसी प्रकार की सख्त तह नहीं हो उपयुक्त रहती है भूमि में पानी की सतह बिना घटे-बढ़े 3 मीटर की गहराई से नीचे होनी चाहिए
निशानदेही व गड्ढ़ों को खोदना
किन्नो के पौधे 5-6 मीटर की दूरी (कतार से कतार व पौधे से पौधा) पर लगाए जाते है इस प्रकार पौधों की संख्या 156-110 पौधे प्रति एकड़ रहेगी बाग का रेखांकन करने के बाद प्रत्येक पौधे के लिए मीटर व्यास के गड्ढ़ों की खुदाई की जाती है इन गड्ढ़ों को खुदी हुई ऊपर की मिट्टी में 40-50 किलोग्राम की गोबर की खाद, 50 ग्राम क्लोरापायरोफाॅस मिलाकर गड्ढें को भरे दें गड्ढ़ा धरातल से 15-20 से.मी. ऊपर उठा हुआ होना चाहिए तथा गड्ढ़ा भरने के बाद सिंचाई करनी चाहिए पौधा इन गड्ढ़ोें के बीच में गाची के साथ लगा दे व सिंचाई कर दे
सिंचाई
किन्नों में उपयुक्त सिंचाई का बहुत महत्व है अधिक पैदावार व अच्छी बढ़ोतरी के लिए सही समय पर सिंचाई करना बहुत आवश्यक है अतः पौधोें में नई पती निकलने से पहले अर्थात् फरवरी-मार्च में तथा फलों की बढ़ोतरी के समय सिंचाई अति आवश्यक हैं गर्मियों में 7-10 दिन के अंतर पर व सर्दियों में 15-20 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए
खाद तथा उर्वरक
अच्छी व अधिक उपज के लिए खाद तथा उर्वरक का बहुत महत्व है फलदार पौधों में 80-100 कि.ग्रा. गोबर की खाद 2-4 कि.ग्रा. किसान तथा, 2 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट व 175 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश डालना चाहिए गोबर की खाद, सिंगल सुपर फास्फेट और म्यूरेट आफ पोटाश दिसम्बर में अंत में डालें आधी किसान खाद, मध्य फरवरी और आधी अप्रैल में डालकर सिंचाई करे मई-जून और फिर अगस्त-सितम्बर में 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट और 1 प्रतिशत यूरिया का घोल पौधों पर छिड़कें खाद पौधों के तने से 30 से.मी. दूर और पौधे के फैलाव तक डालें इसके पश्चात अच्छी तरह गुड़ाई करके सिंचाई करे नाइट्रोजन तत्व यूरिया खाद के रूप मेें डालें तो यूरिया को किसान खाद की खुराक करके डालें
कटाई-छंटाई
किन्नो के पौधों में स्वाभाविक कटाई-छंटाई की आवश्यकता नहीं है परन्तु फल तोड़ने के बाद सूखी व कीट बीमारी ग्रस्त टहनियों को काटना अति आवश्यक है साथ ही जलांकुर, रोगी टहनियायों, आड़ी-तिरछी और सूखी हुई टहनियो को भी हटाते रहना चाहिए ताकि पेड़ों को अच्छी धूप मिल सके
अतः फसलीकरण
पेड़ों में फल आना शुरू होने तक किन्नों के पेड़ों के बीच में कोई उपयुक्त फसल ले लेनी चाहिए दलहनी फसलें या सब्जियां लेना उपयुक्त है मूंग, सोयाबीन, मटर, धनिया, मेथी आदि उगाना लाभदायक हैै परन्तु अत्यधिक सिंचाई वाली सब्जियां नहीं लेनी चाहिए
फलों का गिरना व रोकथाम
नींबू प्रजातीय पौधों में फलों के झड़ने व गिरने की गम्भीर समस्या है फलों के झड़ने की समस्या के समाधान के लिए आरयोफनजीन 2,4 डी जिंक सल्फेट के तीन छिड़काव जोकि फल बनने के बाद, मई व इसके एक महीने के बाद करें इसके लिए 12 ग्राम आरयोफनजीन 6ग्राम 2,4 डी 3 कि. ग्रा. जिंग सल्फेट और 1.5 कि.ग्रा. चूना को 550 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें लेकिन नींबूवर्गीय पौधों के आसपास कपास की फसल होने पर 2,4 डी का छिड़काव न करें
प्रमुख कीड़े व उनका नियन्त्रण
नींबू का सिल्ला
नींबू का सिल्ला नींबूवर्गीय वृक्षों का प्रमुख कीट है व इसका प्रकोप नींबूवर्गीय पौधों की सभी प्रजातीयों में होता है शिशु व प्रौढ़ नई टहनियों से रस चूसते रहते है जिससे पौधोंकी बढवार रूक जाती है व फल कम लगते है इसकी रोकथाम के लिए 750 मि.ली. आक्सीडेमेटान मिथाईल (मैटासिस्टोक्स) 25 ई.सी. या 625 मि.ली. डाईमिथोएट (रोगोर) 30 ई.सी. या 180 मि.ली. फास्फेमिडीन (डाइमेक्रान) 85 डब्ल्यू.एस.सी को 500 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़के
नींबू की तितली
इस कीट की सुण्डी पतो को नुकसान पहुंचाती है इसके नियन्त्रण के लिए 750 मि.ली. एण्डोसल्फान या 500 मि.ली. मोनोक्रोटोफास को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़के
नींबू का लीफ माइनर
यह कीट मुलायम पतों में चांदी की तरह चमकीली और टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगे पतों में बनाकर नुकसान पहंचाता है! इसकी रोकथाम नींबू का सिला के अन्तर्गत दिए गए विवरण के समान है
छाल भक्षक कीट
यह एक हानिकारक कीट है कीट वृक्ष की छाल को खाता है तथा छिपने के लिये डाली में गहराई तक सुरंग बना डालता है जिसके फलस्वरूप डाल/शाखा कमजोर पड़ जाती है नियऩ्त्रण हेतु सूखी शाखाओं को काट कर जला देवें एण्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर शाखाओं तथा डालियों पर छिड़काव करें तथा साथ ही सुरंग को साफ करके किसी पिचकारी की सहायता से 3 से 5 मि.ली. मिट्टी का तेल प्रति सुरंग डाले या फाहा बनाकर सुरंग के अन्दर रख दे एवं बाद में ऊपर से सुरंग को गीली मिट्टी से बंद कर देवे
प्रमुख बीमारियां व उनका उपचार
नींबू का कैंकर (नींबू का कोढ)
पतों टहनियों और फलों पर गहरे भूरे रंग के खुरदरे धब्बे पड़ जाते है पतिया पीली पड़कर सूखने लगती है इस रोग की रोकथाम के लिए 0.3 प्रतिशत कापर आॅक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें
टहनीमार रोग
टहनियां ऊपर से सूखनी शुरू हो जाती है कभी-कभी बड़ी-बड़ी टहनियां भी सूख जाती है और फल व तने भी गल सकते है इसकी रोकथाम के लिए काट-छांट करके बाद 0.3 प्रतिशत कापर आॅक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें अथवा 500 मि.ग्रा. प्लान्टोमाइसिन और 2 ग्राम कापर आॅक्सीक्लोराइड को प्रति लीटर पानी की दर से जुलाई, अक्तूबर, दिसम्बर व फरवरी में छिड़काव करें
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