ग्वार की खेती
ग्वार शुष्क क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण खरीफ की फसल है !ग्वार की खेती अधिकतर दाने के लिए की जाती है ! ग्वार में गोंद होने के कारण यह एक औद्योगिक फसल के रूप में जानी जाती है ! गोंद का उपयोग कपड़ा उद्योग, दवाई, खनन, बम विस्फोट, सौंदर्य प्रसाधन, खाद्य उद्योग में प्रयोग किया जाता है ! ग्वार चूरी जोकि ग्वार का एक गोण उत्पाद है जिसमें 42 प्रतिषत प्रोटिन होती है जबकि ग्वार के बीच में यह 31 प्रतिशत होती है ! अतः पशुओं को ग्वार दाने के बजाए ’गवार चूरी’ खिलाएं जोकि सस्ती है तथा प्रोटीन की मात्रा भी ज्यादा है ! अतः अब यह और भी आवश्यक है कि किसान ग्वार की खेती को वैज्ञानिक ढंग से करें ताकि इस फसल से अधिक पैदावार ली जा सके !
भूमिः ग्वार के लिए अच्छे जल-निकास वाली रेतीली दोमट भूमि सबसे उपयुक्त होती है ! इसे हल्की भूमि में भी उगाया जा सकता है ! कल्लर व सेम वाली भूमि इसके लिए ठीक नहीं होती है !
जमीन की तैयारी: ग्वार की अधिक पैदावार लेने के लिए भूमि का अच्छी तरह तैयार होना जरूरी है इसके लिए 2-3 जुताईयाँ पर्याप्त रहती है ! बिजाई के समय खेत समतल, पर्याप्त नमी वाला व खरपतवारों से मुक्त होना चाहिए !
बिजाई का समय: जल्दी पकने वाली किस्मों (एच.जी.-365 व एच.जी. -563) से अधिक पैदावार लेने के लिए जून का दूसरा पखवाड़ा सबसे उचित है हालांकि इन किस्मों की बिजाई 15 जुलाई तक भी की जा सकती है लेकिन पैदावार पर असर पड़ेगा ! तत्पष्चात् बिजाई करने पर पैदावार में काफी कमी आ जाती है ! अगर किसी कारण ग्वार की बिजाई मध्य जुलाई तक नहीं हो पाती है तो उस अवस्था में देरी से पकने वाली किस्म (एच.जी.-75) की ही बिजाई करें ! जिसकी बिजाई 25 जुलाई तक की जा सकती है ! ग्वार की किसी भी किस्म की अगस्त के महीनें में बिजाई न करें !
बीज की मात्रा: एक एकड़ के लिए 5-6 कि0ग्रा0 बीज जल्दी पकने वाली किस्मों (एच.जी.-365 द एच.जी.-365) व 7-8 कि0ग्रा0 बीज देरी से पकने वाली किस्म (एच.जी.-75) के लिए पर्याप्त रहता है !
बिजाई क ढंग: ग्वार की शीघ्र पकने वाली किस्मों (एच.जी.-563)को 30
सैं.मी. की दूरी पर तथा देरी से पकने वाली किस्म (एच.जी -75) को 45
सैं.मी. की दूरी पर पोरा विधि से बीजें ! पौधे से पौधे की दूरी 15 सैं.मी. रखें ! ग्वार का बीज 5-6 सैं.मी. गहरा बोना चाहिए !
उर्वरक: फसल की बीजाई के समय 16 किलो फास्फोरस (100 कि0ग्रा0 सिंगल सुपरफास्फेट) तथा 8 किलो नाइट्रोजन (17 किलो यूरिया) प्रति एकड़ के हिसाब से ड्रिल करें ! यदि भूमि में गन्धक की कमी हो तो 8 किलो गन्धक प्रति एकड़ (60 किलो जिप्सम बिजाई पर प्रयोग करें ! उपरोक्त खादों के प्रयोग से पहले भूमि परीक्षण अवष्य करवाएं तथा उसी अनुसार उर्वरकों को प्रयोग करें !
खरपतवार निंयत्रण: खरपतवार नियंत्रण के लिए एक गोड़ाई बिजाई के 25-30 दिन बाद करें तथा अगर आगे आवष्यकता हो तो एक और गोड़ाई इसके 15 दिन बाद करें !
सिंचाई: आमतौर पर मानसून की र्वा पर बीजी गई फसल के लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती ! यदि फलियाँ बनते समय बिल्कुल वर्षा न हो तो एक हल्की सिंचाई अवश्य करें !
कटाई और गहाई: जब फसल की पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ने लगें और फलियों का रंग भूरा हो जाए तब फसल की कटाई करें ! कटाई के बाद फसल को कुछ दिन के लिए सूखने के लिए छोड़ना चाहिए ! फसल के पूर्ण सूखने के बाद इसकी गहाई करें ! अच्छी प्रकार से सुखाए गए दानों को नमी रहित स्थान पर भंडारण करें !
भूमिः ग्वार के लिए अच्छे जल-निकास वाली रेतीली दोमट भूमि सबसे उपयुक्त होती है ! इसे हल्की भूमि में भी उगाया जा सकता है ! कल्लर व सेम वाली भूमि इसके लिए ठीक नहीं होती है !
जमीन की तैयारी: ग्वार की अधिक पैदावार लेने के लिए भूमि का अच्छी तरह तैयार होना जरूरी है इसके लिए 2-3 जुताईयाँ पर्याप्त रहती है ! बिजाई के समय खेत समतल, पर्याप्त नमी वाला व खरपतवारों से मुक्त होना चाहिए !
बिजाई का समय: जल्दी पकने वाली किस्मों (एच.जी.-365 व एच.जी. -563) से अधिक पैदावार लेने के लिए जून का दूसरा पखवाड़ा सबसे उचित है हालांकि इन किस्मों की बिजाई 15 जुलाई तक भी की जा सकती है लेकिन पैदावार पर असर पड़ेगा ! तत्पष्चात् बिजाई करने पर पैदावार में काफी कमी आ जाती है ! अगर किसी कारण ग्वार की बिजाई मध्य जुलाई तक नहीं हो पाती है तो उस अवस्था में देरी से पकने वाली किस्म (एच.जी.-75) की ही बिजाई करें ! जिसकी बिजाई 25 जुलाई तक की जा सकती है ! ग्वार की किसी भी किस्म की अगस्त के महीनें में बिजाई न करें !
बीज की मात्रा: एक एकड़ के लिए 5-6 कि0ग्रा0 बीज जल्दी पकने वाली किस्मों (एच.जी.-365 द एच.जी.-365) व 7-8 कि0ग्रा0 बीज देरी से पकने वाली किस्म (एच.जी.-75) के लिए पर्याप्त रहता है !
उर्वरक: फसल की बीजाई के समय 16 किलो फास्फोरस (100 कि0ग्रा0 सिंगल सुपरफास्फेट) तथा 8 किलो नाइट्रोजन (17 किलो यूरिया) प्रति एकड़ के हिसाब से ड्रिल करें ! यदि भूमि में गन्धक की कमी हो तो 8 किलो गन्धक प्रति एकड़ (60 किलो जिप्सम बिजाई पर प्रयोग करें ! उपरोक्त खादों के प्रयोग से पहले भूमि परीक्षण अवष्य करवाएं तथा उसी अनुसार उर्वरकों को प्रयोग करें !
खरपतवार निंयत्रण: खरपतवार नियंत्रण के लिए एक गोड़ाई बिजाई के 25-30 दिन बाद करें तथा अगर आगे आवष्यकता हो तो एक और गोड़ाई इसके 15 दिन बाद करें !
सिंचाई: आमतौर पर मानसून की र्वा पर बीजी गई फसल के लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती ! यदि फलियाँ बनते समय बिल्कुल वर्षा न हो तो एक हल्की सिंचाई अवश्य करें !
कटाई और गहाई: जब फसल की पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ने लगें और फलियों का रंग भूरा हो जाए तब फसल की कटाई करें ! कटाई के बाद फसल को कुछ दिन के लिए सूखने के लिए छोड़ना चाहिए ! फसल के पूर्ण सूखने के बाद इसकी गहाई करें ! अच्छी प्रकार से सुखाए गए दानों को नमी रहित स्थान पर भंडारण करें !
फसल-चक्र: सिंचित क्षेत्रों में ग्वार-गेहूँ व ग्वार-जौ का फसल चक्र अपनाएं ! अगर ग्वार के बाद राया की फसल लेनी है तो उस अवस्था में ग्वार की जल्दी पकने वाली किस्मों (एच.जी.-365 व एच.जी-563)
की बिजाई जून के दूसरे पखवाड़े में ही करें !
पौध संरक्षण उपाय: कभी-कभी फसल पर तेला आक्रमण करता है ! इसकी रोकथाम के लिए 200 मि0ली0 मैलाथियान 50 ई.सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से हस्तचालित यन्त्र से छिड़काव करें ! इस फसल को कीटनाशक के प्रयोग के पश्चात् चारे के लिए इस्तेमाल न करें !
पैदावार बढ़ाने के लिए मुख्य सुझावः
खेत का अच्छी तरह तैयार करें ! बिजाई करते समय खेत में नमी उचित मात्रा मे हों !
उन्नत किस्मों का प्रयोग करें !
फसल की सही समय पर बिजाई करें ! सिफारिश की गई बीज की मात्रा तथा सही दूरी पर बिजाई करें !
उर्वरकों की सही मात्रा भूमि परीक्षण के आधार पर प्रयोग करें !
खरपतवारों की रोकथाम समय पर अवश्य करें !
सूखा पड़ने पर एक हल्की सिंचाई फलियाँ बनाते समय करें !
पौध संरक्षण उपाय: कभी-कभी फसल पर तेला आक्रमण करता है ! इसकी रोकथाम के लिए 200 मि0ली0 मैलाथियान 50 ई.सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से हस्तचालित यन्त्र से छिड़काव करें ! इस फसल को कीटनाशक के प्रयोग के पश्चात् चारे के लिए इस्तेमाल न करें !
पैदावार बढ़ाने के लिए मुख्य सुझावः
खेत का अच्छी तरह तैयार करें ! बिजाई करते समय खेत में नमी उचित मात्रा मे हों !
उन्नत किस्मों का प्रयोग करें !
फसल की सही समय पर बिजाई करें ! सिफारिश की गई बीज की मात्रा तथा सही दूरी पर बिजाई करें !
उर्वरकों की सही मात्रा भूमि परीक्षण के आधार पर प्रयोग करें !
खरपतवारों की रोकथाम समय पर अवश्य करें !
सूखा पड़ने पर एक हल्की सिंचाई फलियाँ बनाते समय करें !
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