सागवान की खेती
सागवान का परिचय (Teak Tree Introduction)
सागवान यानि टीक को सामान्यत सागौन, सागवान, साक से जाना जाता है व इसका अंग्रेजी नाम Teak साईंटीफिक
नाम Tectona Grandis है I
सागवान उष्ण कटीबंधीय लकड़ी प्रजाति का वृक्ष है यह
भारत की बहुत मूल्यवान और ज्यादा कीमत वाली इमारती लकड़ी है।
यह लम्बा पतझड़ी वृक्ष है,
लम्बाई 40 मीटर तक इसकी टहनीया स्टेली भूरे रंग की होती है।
चाटू मेनन को भारतीय टिक की खेती के पिता के तौर पर
जाना जाता है और भारत में सागवान की खेती पहली बार 1842 में लायी गई थीं।
यह सबसे महत्त्वपूर्ण कठोर लकड़ी है और इसका प्रयोग फर्नीचर, प्लायवुड के लिए ज्यादा प्रयोग किया जाता है।
सागवान से बनाये गए सामान अच्छी क्वालिटी के होते है
और ज्यादा टिकते भी है,
इसलिए सागवान की लकड़ी की भारी मांग हमेशा रहती है।
इसकी खेती में रिस्क कम और अच्छा मुनाफा अच्छा हो सकता
है।
भुमिका (Detail about Teak Tree)
सागवान को संस्कृत में शाक
कहते हैं। वर्बीनैसी (Verbenaceae) कुल का यह वृहत्, पर्णपाती वृक्ष है। यह शाखा और शिखर पर ताज ऐसा चारों तरफ फैला हुआ होता
है।
सागवान भारत, बरमा और थाइलैंड का देशज
है, और फिलिपाइन द्वीप, जावा और मलाया
प्रायद्वीप में भी पाया जाता है। साल में 30 इंच से अधिक
वर्षा वाले और 25° से 27° से. तापमान
वाले स्थानों में यह अच्छा पनपता है।
इसके पेड़ साधारणत 100 से 150 फुट ऊँचे और धड़ 3 से 8 फुट
व्यास के होते हैं। धड़ की छाल आधा इंच मोटी, धूसर या भूरे
रंग की होती है। इनका रसकाष्ठ सफेद और अंत:काष्ठ हरे रंग का होता है।
अंत:काष्ठ की महक सुहावनी होती है। महक बहुत दिनों तक
कायम रहती है। सागवान की लकड़ी बहुत कम सिकुड़ती और बहुत मजबूत होती है। इस पर
पॉलिश जल्दी चढ़ जाती है जिससे यह बहुत आकर्षक हो जाती है।
सालो के बाद भी सागवान की लकड़ी अच्छी अवस्था में पाई
गई है। सागवान के अंत:काष्ठ को दीमक आक्रमण नहीं करती लेकिन रसकाष्ठ को खा जाती
है।
भारत के ट्रावनकोर, कोचीन, मद्रास, कुर्ग, मैसूर, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के जंगलों के सागवान की उत्कृष्ट लकड़ियाँ भेजी
जाती हैं।
सागवान पहले बर्मा से पर्याप्त मात्रा में भारत आता था, लेकिन
अब भारत से ही निर्यात किया जाने लगा है।
सागवान का औषधिय उपयोग (Medicinal Use of
Teak)
कमजोर पाचन में, गर्मी लगने पर, दानों में , साप काटने पर ,पथरी
के इलाज में , बालों के लिए ,दाद खाज
खुजली में, सिर दर्द में तथा सूजन आदि में
सागवान से आय व कीमत (Income from Teak
Farming)
सागवान का पौधा प्रयोगशाला में टिश्यू कल्चर तकनीक
द्वारा भी तैयार किया जाता है। टिश्यू कल्चर सागवान पौधा रोग व कीटाणु से मुक्त होता
है। इसमें बढ़वार जल्दी व पौधों में एकसमानता दिखने को मिलती है।
इसकी मुख्य शाखा
मजबूत व सीधी होती है। इसे किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है लेकिन पौधा लगाने के
बाद समय पर सिंचाई के साथ-साथ देखभाल जरूरी है। इस पौधे से 12-15 सालों में लकड़ी मिलनी शुरू हो जाती है। लकड़ी मजबूत व सुनहरी पीली और
उच्च गुणवत्तायुक्त होती है।
लाभ: (Profit)
टिशू कल्चर सागवान के पौधे के बीच दुरी की 8x10 रखते है तो प्रति एकड़ 520 से 540 पौधे लगेगे और उन्हें प्रति पौधा अनुमानित उत्पादन 17-25 घन फीट होता है। जिसका बाजार मूल्य लगभग प्रति घन फीट 2000 रुपये है इस प्रकार 15 से 20 सालों
के बाद प्रति एकड़ कुल आय लगभग दो करोड़ के लगभग हो सकती है ।
जलवायु (Climate requirement for Teak)
पेड़ के लिए उचित जलवायु आदि की जाँच करना आवश्यक है, अगर
आप सागवान की खेती करना चाहते है तो नमी एवं उष्णकटीबंधिय क्षेत्र उत्तम होता है I
इसके उत्तम विकास के लिए 15 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान के साथ 1000 mm से
अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है ! सागवान पेड़ अधिक तापमान को बड़े आसानी से सहन
कर सकता है !
भूमि (Soil)
मिटटी का चयन करना बेहद आवश्यक है सागवान की खेती करना
चाहते है तो इसके लिए जलोढ़ मिटटी सबसे उत्तम मिटटी है।
भूमि की तैयारी (Field
preparation for Teak)
भूमि की पहले गहरी जुताई करे और उसमे जैविक खाद या
गोबर खाद मिलाकर तैयार करे।
सिंचाई (Irrigation in Teak)
शुरुआती दिनों में पौधे की बढ़वार के लिए सिंचाई अति
आवश्यक है। खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ सिंचाई भी चलती रहनी चाहिए !
तीन साल तक
हर महीने पानी देना चाहिए और अगस्त और फरवरी महीने में दो बार खाद डालना चाहिए।
लगातार तीन साल तक प्रत्येक पौधे में 50 ग्राम अमोनियम सल्फेट,
डी.ए.पी. और पोटाश का मिश्रण डाला जाना चाहिए।
नियमित तौर पर सिंचाई
और पौधे की छंटाई से तने की चौड़ाई बढ़ जाती है। ये सब कुछ पौधे के शीर्ष भाग के
विकास पर निर्भर करता है वहीं, अच्छी गुणवत्ता वाले पेड़ के
लिए साल में चार महीना सूखा मौसम चाहिए और इस दौरान 60 एमएम
से कम बारिश ही अच्छी होती है।
पेड़ के बीच अंतर, तने की
काट-छांट से पौधे के विकास पर फर्क पड़ता है। कांट-छांट में अगर देरी की गई या फिर
पहले या ज्यादा कांट-छांट की जाती है तो इससे भी इसकी खेती पर बुरा प्रभाव पड़ता
है।
खरपतवार नियंत्रण (Weed control in
Teak)
सागवान के पौधारोपण के शुरुआती दो-तीन सालों में खरपतवार
नियंत्रण पर ध्यान देना जरूरी है। खरपतवार हटाने का कार्य करते रहना चाहिए।
पहले
साल में तीन ,
दूसरे साल में दो और तीसरे साल में एक बार ये अभियान चलाना आवश्यक
है। ध्यान रखनेवाली बात ये है कि सागवान ऐसी प्रजाति का पेड़ है जिसकी वृद्धि और
विकास के लिये सूर्य की पर्याप्त रोशनी जरूरी है।
पौधे लगाने का समय ( Teak Planting
time)
सागवान के लिए नमी और उष्णकटिबंधीय वातावरण जरूरी होता
है। यह ज्यादा तापमान को आसानी से बर्दाश्त कर लेता है। लेकिन सागवान की बेहतर
विकास के लिए उच्चतम 37
से 42 डिग्री सेंटीग्रेट और निम्नतम 10
से 15 डिग्री सेंटीग्रेड उपयुक्त है। 1000
मिलीमीटर से अधिक बारिश वाले इलाके में इसकी अच्छी पैदावार होती है।
मार्च से अक्टूम्बर का महीना रोपाई के लिये सही हो
सकता है ! मिटटी की pH
6.5 से 7.5 अच्छी होती है ! वर्षा के पानी का जमाव नही होना चाहिए ओर तापमान
15 डिग्री से 40 डिग्री अच्छा रहता है
! मई के महीने में अगर रोपण करे तो उसके आस पास डेंचा का पौधा लगाये।
पौधे लगाते समय सावधानिया (Precautions
while planting saplings)
पौधारोपन की जगह पर सही दूरी पर एक सीध में गड्ढा
खुदाई जरूरी होता है। सागवान रोपन के लिए कुछ जरूरी बातें- 45 cm x 45 cm x
45 cm की नाप के गड्ढे की खुदाई करें।
सागवान की खेती के लिए सबसे अच्छा मौसम मॉनसून का होता
है
!
अच्छी बढ़त के लिए बीच-बीच में निराई-गुड़ाई का भी काम करते रहना
चाहिए, पहले साल में एक , दूसरे साल
में दो और तीसरे साल में एक बार पर्याप्त है। पौधारोपन के बाद मिट्टी की तैयारी को
अंतिम रुप दें और जहां जरूरी है वहां सिंचाई की व्यवस्था करें।
खाद (Fertilizer application)
फोस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, नाइट्रोजन और ऑर्गेनिक तत्वों से भरपूर
मिट्टी सागवान के लिए बहुत आवश्यक है।
सागवान के विकास और लंबाई के लिए कैल्सियम की ज्यादा
मात्रा बेहद जरूरी है। यही वजह है कि सागवान को कैलकेरियस प्रजाति का नाम दिया गया
है।
सागवान की खेती कहां होगी इसको निर्धारित करने में
कैल्सियम की मात्रा अहम भूमिका निभाती है। साथ ही जहां सागवान की मात्रा जितनी
ज्यादा होगी उससे ये भी साबित होता है कि वहां उतना ही ज्यादा कैल्सियम है
सागवान मे अंतरवर्तीय फसल (Intercropping)
जहां कृषि योग्य भूमि है वहां शुरु क़े दो साल के दौरान
सागवान की खेती के बीच में अंतरवर्तीय फसल उगाई जाती है ।
सागवान की खेती के बीच में आमतौर पर गेहूं, धान,
सोयाबीन, तिल और मिर्च के साथ-साथ सब्जी की
खेती की जाती है।
सागवान में रोग एवं नियंत्रण (Disease control
in Teak)
सागवान में दीमक के लगने का ज्यादा संभावना होती है, यह
पेड़ को अन्दर से खोखला कर देते है और जड़ो को गला देते है जिससे पौधा भोजन उठाना
बंद कर देता है और मर जाता है ! दीमक जैसे कीट सागवान के पौधे को भारी नुकसान
पहुंचाते हैं।
सागवान के पौधे में आमतौर पर पॉलिपोरस जोनालिस नाम का
रोग लग जाता है जो पौधे की जड़ को गला देते हैं। गुलाबी रंग का फंगस पौधे को खोखला
कर देते हैं।
ओलिविया टेक्टोन और अनसिनुला टेक्टोन की वजह से पाउडर
जैसे फफूंद पैदा हो जाते हैं जिससे असमय पत्ता झड़ने लगता है। इसके बाद पौधे के
सुरक्षा के लिए रोगनिरोधी उपाय करना जरूरी हो जाता है।
रबर का पेड़, डेविल ट्रमपेट और नीम के
पेड़ के ताजा पत्तों के रस इन रोगों से लड़ने में बेहद कारगर साबित होते हैं।
जैविक और अकार्बनिक खाद के मुकाबले इससे हानिकारक कीट
को अच्छी तरह से खत्म किया जाता है और साथ ही यह पर्यावरण को भी नुकसान नहीं
पहुंचाता है।
सागवान में कटाई-छंटाई का महत्व (Importance of
pruning in teak)
सागवान के पौधे की कटाई-छटाई पौधा रोपन के पांच से दस
साल के बीच की जाती है। इस दौरान जगह की गुणवत्ता और पौधों के बीच अंतराल को भी
ध्यान में रखा जाता है।
अच्छी जगह और नजदीकी अंतराल (1.8x1.8 m और 2x2) वाले पौधे की पहली और दूसरी कटाई-छंटाई का
काम पाचवें और दसवें साल पर की जाती है।
दूसरी बार कटाई-छंटाई के बाद 25 फीसदी पौधे को विकास के लिए छोड़ दिया जाता है।
सागवान की कटाई में ध्यान रखने वाली बातें-
काटे जाने वाले पेड़ पर चिन्ह लगाएं और सीरियल नंबर
लिखें !
मुख्य क्षेत्रीय वन अधिकारी के पास इस संबंध में
रिपोर्ट दर्ज कराएं,
क्षेत्रीय वन विभाग जांच के लिए अपने अधिकारी भेजकर रिपोर्ट तैयार
करवाएगा !
काट-छांट या कटाई के बारे में स्थानीय वन अधिकारी को
रिपोर्ट भेजे, अनुमति मिलने के बाद काट-छांट या कटाई की प्रक्रिया शुरु की जाती है
सागवान की कटाई (Teak
harvesting)
सागवान के पेड़ो के कटाई करने के लिए पौधे
को लगाने से 15 वर्ष के बाद का समय सबसे अच्छा होता
है क्यूँकि इस समय पर पेड़ अच्छे से तैयार
हो जाते है ! इस समय तक पेड़ में मौजूद
मुख्य तना की लम्बाई 25-50 फीट एवं इसकी मोटाई 35-45 इंच तक होती है, जिसमे आपको 17-25 क्यूबिक फीट तक लकड़ी प्राप्त हो सकती है
सागवान का उत्पादन (Teak production)
15-20
साल के दौरान एक सागवान का पेड़ 17 से 25
क्यूबिक प्रति पेड़ लकड़ी देता है। सागवान का मुख्य तना आमतौर पर 25
से 50 फीट ऊंचा होता है और करीब 35 से 45 इंच मोटा होता है। एक एकड़ में उन्नत किस्म के
करीब 540 सागवान का पेड़ पैदा होता है। इसके लिए पौधारोपन के
दौरान 8 फीट का अंतराल रखना जरूरी होता है।
सागवान की मार्केटिंग (Teak marketing)
सागवान के लिए बाजार में बेहद मांग है और इसे बेचना भी
बेहद आसान है। इसके लिए बाय बैक योजना के अलावा स्थानीय टिंबर मार्केट भी होते
हैं। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेहद मांग होने की वजह से सागवान की खेती
बेहद फायदेमंद है। शासकीय प्रक्रिया का अनुसरण जरूर करें।