जौ की खेती फायदा और किस्मे barley farming


             जौ की खेती फायदा और किस्मे barley farming

जौ एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक व खाद्यान्न फसल है। यह हमारे प्रदेश के शुष्क व अर्धशुष्क भागों में उगाई जाने वाली साढ़ी की प्रमुख फसलों में से एक है।
जौ का माल्ट विभिन्न प्रकार के पोषक भोजन, हल्के पेय व मादक पेय आदि बनाने के काम आता है। माल्ट की अधिक फैक्ट्रियां लगने से इस फसल का महत्त्व बढ़ गया है।

आज हमारे पास बी एच-393 जैसी किस्म है जिसकी उत्पादन क्षमता 64 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक है। इससे हमें 79 प्रतिशत तक उत्तम किस्म का माल्ट भी मिल जाता है।

अतः किसानों को चाहिए कि वे माल्ट जौ की पैदावार बढ़ाने के लिए नवीनतम तकनीक अपनायें व निम्न बातों को ध्यान में रखें –

सही किस्म व शुद्ध बीज


बी एच-393 

एक नवीनतम किस्म है जिसमें माल्ट की गुणवत्त व उत्पादकता भी काफी ज्यादा है। इस गुण के कारण इसकी मांग उद्योग जगत में बढ़ रही है।
किसी विशेष बीमारी या कीट का इस । किस्म पर विपरीत प्रभाव नहीं पाया गया। यह किस्म 120-122 दिन में पक जाती है। औसत पैदावार 46 क्विंटल व अधिकतम पैदावार 64 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।

मिट्टी व खेत की तैयारी

अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी में जौ की फसल अच्छी होती है। रेतीली और खारी व कमजोर जमीन में भी इसे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
खेत में 3-4 जुताइयां देशी हल से व बारानी स्थितियों में 4 से 5 जुताइयां करनी चाहिएं व प्रत्येक जुताई के बाद सुहागा लगानम अत्यन्त आवश्यक है।

बीज की मात्रा, बिजाई का समय व ढंग

बारानी क्षेत्रों के लिए 30 किलोग्राम तथा सिंचित क्षेत्रों के लिए 35 किलोग्राम व पछेती काश्त के लिए 40-45 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता है। बिजाई 15 अक्तूबर से 31 अक्तूबर (बारानी) व नवम्बर (सिंचित) में पूरी कर लें। समय की सिंचित बिजाई में दो कतारों का फासला 22.5 सेंटीमीटर तथा देर से बोई जाने वाली फसल में कतारों का फासला 18-20 सें.मी. रखना चाहिए। बिजाई 5-7 सें.मी. गहराई पर करें।

बीज उपचार

दीमक प्रभावित क्षेत्रों में बीज का उपचार 600 मि.ली. क्लोरोपाइरीफॉस (20 ई.सी.) अथवा 750 मि.ली. इण्डोसल्फान (35 ई.सी.) दवा का पानी में 12.5 लीटर घोल बनाकर बुवाई से एक दिन पहले करें। यह मात्रा 100 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त है।

इसके बाद 2 ग्राम एमीसान (पी.ऍम.ए.) व 2 ग्राम वीटावैक्स/बाविस्टीन प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से सूखा उपचार करें। बिजाई से पहले बीज को जैव उर्वरक (एजोटोबैक्टर/एजोस्पारिलम) के टीके से उपचारित करें।
बीज का उपचार साफ पक्के फर्श या पोलीथीन सीट पर छाया में करना चाहिए।

खाद की मात्रा

आमतौर से जौ में प्रति एकड़ 24 किलोग्राम नाईट्रोजन, 12 किलोग्राम फास्फोरस व 6 किलोग्राम पोटाश की सिफारिश की जाती है। फास्फोरस, पोटाश व आधी नाईट्रोजन बुवाई के समय तथा बची हुई आधी नाइट्रोजन पहली सिंचाई के बाद दें।

असिंचित क्षेत्रों में केवल 12 किलोग्राम नाइट्रोजन व 6 किलोग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ डालें। यह सारी मात्रा बुवाई के समय ही डालनी चाहिए।

सिंचाई

जौ के लिए गेहूँ की तरह अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। पहली सिंचाई बिजाई के 35 से 40 दिन बाद तथा दूसरी 80 से 85 दिन बाद व पछेती बिजाई में तीसरी सिंचाई बालियों में दानें बनने के बाद कर देनी चाहिए।

खरपतवारों की रोकथाम

पहली सिंचाई के बाद जब बत्तर जमीन आ जाये तब फसल की नलाई करें। यदि ऐसा न कर सकें तो 200-250 लीटर पानी में 400 ग्राम 2,4डी (सोडियम साल्ट) को घोलकर बिजाई के 25 दिन बाद प्रति एकड़ छिड़काव करने से चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।

कटाई व भण्डारण

फसल की कटाई ठीक समय पर करें | अधिक पकने पर बालें टूट कर गिर जाती हैं। भण्डारण मैटलिक बिनों में करने की सिफारिश की जाती है। भण्डारण के समय नमी की मात्रा 12-14 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।


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