बाजरा की उन्नत किस्मे व् खेती
किस्मे
बायर क्रॉप साइंस
9444 -
बाजरा
की यह किस्म राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के लिए अच्छी
है! 80 से 85 दिन का समय लेती है ! अच्छी पैदावार देती है !
9450 -
बायर की यह किस्म राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के
लिए अच्छी है! तैयार होने में 85 से 90 दिन का समय लेती है !डाउनी मिल्ड्यू, रस्ट,ब्लास्ट और लोगिंग (lodging)के
प्रतिरोधी किस्म है ! उपजाऊ भूमि के लिए अच्छी किस्म है !
7701 -
गुजरात राजस्थान और
उत्तरप्रदेश के लिए ! 75 से 80 दिन का समय लेती है
XL-51 -
महारष्ट्र, गुजरात,
कर्नाटका, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु के लिए ! हलकी मिटटी के लिए !
9330 & 9343 -
महाराष्ट्र, और दक्षिण पश्चिम उत्तर प्रदेश के लिए !
तेजस - राजस्थान और हरियाणा
के लिए उपयुक्त किस्म है ! जल्दी पककर तैयार ( 65-70 ) हो जाती है !
Mahyco –
Tower (MRB-2210) ,
Caliber (MRB-204), MRB-2240
जे.के.एग्री जेनेटिक्स
JKBH-26,
JKBH-778(80-85 दिन में तैयार हो जाती है पौधे की ऊंचाई 240 से
250 cm तक होती है , 2 से
3 tiller होते है )
गंगा कावेरी
GK-1111
(मध्यम लेट अवधि की किस्म और लम्बी किस्म है ) , GK-1116 (मध्यम अवधि )
Rasi Seeds
Rasi-1818 (80 से 84 दिन , टिलर ज्यादा होते
है ), 1827 (84 से 87 दिन ,कटाई
तक हरी रहती है )
पायोनियर सीड्स पायोनियर
86M88 – ये वैरायटी लीफ ब्लास्ट और रस्ट के प्रति सहनशील है!
86M11 – यह माध्यम अवधि की वैरायटी है! ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म है ! इसके
पत्ते चौड़े होते है और चारे की पैदावार भी अधिक देती है
86M86 – यह किस्म भी माध्यम अवधि की है और अच्छा उत्पादन देती है!
86M35 – यह किस्म जल्दी पकने वाली है!
86M74, 86M84 – ये भी अच्छी किस्मे है अच्छा
उत्पादन देती है!
बाजरा की खेती ज्यादातर अफ्रीका एवं एशिया
प्रायद्विप में होती है ! भारत में राजस्थान, गुजरात,
महाराष्ट्रा, ओडीसा, पश्चिम
बंगाल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं अन्य
सुखा ग्रस्त क्षेत्रों की यह महत्वपूर्ण फसल है ! इसके दानों में करीब 12 प्रतिशत
नमी, 11 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत
वसा, 67 प्रतिशत काबरेहाइड्रेट एवं 3 % मिनरल पाया जाता है !
यह मुर्गीपालन व पशुपालन में भी दाना एवं चारा के तौर पर काफी उपयोगी है!
मिटटी और जलवायु
इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि पर हो
सकती है परंतु जल भराव के प्रति सवेदनशील है ! इसकी खेती के लिये बालू दोमट मिट्टी
जिसमें जल निकास अच्छा हो, सर्वाधिक अनुकूल पायी गयी
है !
इसकी खेती गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में जहां 400-650 मिली मीटर बारिश हो करना लाभदायक है ! अधिक तेज धूप और कम वर्षा के कारण
जहां पर ज्वार की खेती संभव नहीं है वहा के लिये बाजरा एक अच्छी वैकल्पिक फसल है !
बाजरा के लिए 20-30 सेंटीग्रेट तापमान सबसे उचित है ! यह एसिडिक
सोइल के प्रति संवेदनशील है !
भूमि की तैयारी
गहरी जुताई के बाद दो हल्की जुताई एवं पाटा
लगाना आवश्यक है ! खेत को लेज़र लैंड लेवलर से समतल क्र ले तो अच्छा रहता है ! खेत
की उपजाऊ शक्ति और नमी बनाये रखने के लिए खेत तैयारी के 15
दिन पहले खेतों में दो ट्राली सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड डालना
चाहिए !
बीज एवं बुवाई
1.5 से 2 किलोग्राम/एकड़ ! पौधे से पौधे की
दुरी 12-15
सेंटीमीटर तथा कतार से कतार की दुरी 45-50 सेंटीमीटर
! जहां कम वर्षा होती है वहां पर बुवाई जुलाई के शुरूआत में करना उचित होगा ! जहां
थोड़ी ज्यादा वर्षा होती है वहां पर जुलाई के अंत में बुवाई करने से मौनसूनी वर्षा
के परागण पर होने वाले नुकसान से फसल बची रहती है ! सामान्य तौर पर बीजों की बुवाई
छिडकाव विधि से की जाती है ! बुवाई के तीन सप्ताह बाद पौधे से पौधे 15 सेंटीमीटर एवं कतारों के बीच 45-50 सेंटीमीटर की
दूरी रखकर पौधों की छटाई कर देनी चाहिए ! जहां पर जमाव नही हुआ वहां पर उखाड़े गये
पौधों की रोपाई भी कर देनी चाहिए ! बाजरा की बुवाई सीड ड्रील मशीन से भी की जा
सकती है !
खरपतवार नियंत्रण
बुवाई के तीन से पांच सप्ताह के बाद खुरपी या
कसोले से खरपतवार की निराई करे ! अगर मैकेनिकली संभव न हो तो रसायन के प्रयोग से खरपतवार
नियंत्रण किया जा सकता है ! एट्राजीन (50 डब्लयूपी)
का 500 ग्राम (हल्की मिट्टी) और 750 ग्राम
(दोमट अथवा भारी मिटी) को 250-300 लीटर पानी में घोलकर बाजरा
बुवाई के दो दिन के अंदर खेतो में छिड़काव करें ! इससे चौड़ी व सकरी दोनों तरह की
खरपतवार का नियंत्रण होता हैं !
सिंचाई
बाजरा सामान्य तौर पर वर्षाधारित फसल है !
परन्तु विशेष परिस्थिती में इसे दो सिंचाई दे सकते है ! पौधों के विकास की अवस्था
में इसका विशेष महत्व है ! बाजरा की फसल जल भराव बर्दाश्त नहीं करती है ! इसलिए
अधिक बारिश होने पर खेत से अतिरिक्त पानी को निकाल देना चाहिए !
कीट और बिमारी नियंत्रण
दीमक सूखे इलाके का प्रमुख कीट है ! बुआई के
समय कार्बोफुरान (3G) का 10 किग्रा या कॉरटाप
हाइड्राक्लोराइड (4G) का 7.5 किग्रा/एकड़
प्रयोग करे ! इसके अलावा क्लोरपाइरीफॅास (20 ईसी) का 1.25 लीटर प्रति एकड 25 किलो बालू में मिलाकर खेत में प्रयोग करे !
जड़ में लगनेवाला गीडार –
ये पौधे की प्रारंभीक अवस्था में हानी पहुंचाता है
! इसका बचाव दीमक के समान करे !
टीड्डा -
इमीडाक्लोरपीड (17.8 SL) का 125 मि.ली. प्रति
हेक्टेयर अथवा 50 मिली/एकड़ छिड़काव करें !
शूटफ्लाई -
तीन सप्ताह के पौधो पर पतों के
नीचले सतह पर मक्खियां अंडे देती है ! दो-तीन दिनों में बच्चे बाहर आकर पौधो के
आधार में छेद बनाकर कोमल हिस्से को खाते है व् तना खोखला हो जाता है ! इसमें बीच
का भाग सूख जाता है ! इसे आसानी से नहीं खीच सकते है ! शुटफ्लाई के नियंत्रण के
लिए कार्बोफुरान का 8-10 किलोग्राम दाना एक एकड़
में प्रयोग करें !
बाजरे में लगने वाले रोग
डाउनी मिल्डयू –
ये एक फफूंद स्केलेरोस्पोरा
जर्मीनीकोल के कारण पतों पर पीली, उजली, लंबी धारियॉ बनती है जो बाद में भूरी होकर टूट जाती है ! बालीया मुड़ी हुई
पत्तियों के रूप में दिखाई देती है ! फंगस से बचाव के लिए बीजोपचार, संक्रमित पौधो को उखाड़ कर जलाना तथा प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करना
ठीक रहता है !
इरगोट बिमारी
ये बिमारी क्लेभिसेप्स फ्यूजोफॉरमींस नामक
फफूंद के संक्रमण के कारण होती है ! इसमें बाजरा की बालियों से शहद की तरह गीला चिपचिपा
निकलता है जो बाद में बाली पर चिपक जाता है ! इस से बचाव के लिए बाजरा की लेट बुवाई
से बचे ! इस प्रकार के पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए ! बीज उपचार के साथ ही
गर्भावस्था में मैंकोजेब का 600-800 ग्राम/एकड़ 10
दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें ! इस रोग से ग्रसित पौधों
के बालियां तनो का प्रयोग पशु चारे में न करें !
कलिका रोग
ये रोग टालीपोस्पोरियम पेनिसिलारिया फफूंद
के संक्रमण से होता है ! बाजरा की बालियों में दाने सामान्य से बड़े एवं हरे रंग
के दिखाई देते हैं ! इस रोग से बचाव के लिए तीन वर्षिय फसल चक्र,
गहरी जुताई, बीज उपचार एवं मैन्कोजेब 600-800 ग्राम/एकड़
10 दिनों के अंतराल पर दो-तीन छिड़काव करें!
बीज उपचार -दो ग्राम कार्वेडाजीम अथवा तीन
ग्राम कैप्टान प्रति किलोग्राम बीज प्रयोग करना चाहिए!
खाद एवं उर्वरक
स्थानीय क़िस्मो के लिए 10-15 टन
प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद डाले ! अधिक उपज वाली क़िस्मो के लिए मिट्टी जांच
के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करे ! सामान्य तौर पर सिंचित अवस्था में 100-120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-60 किलोग्राम फास्फोरस,
30-40 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है ! वर्षाधारित खेती में लगभग
आधी मात्र की आवश्यकता होती है ! सिंचित खेती में 70 किलोग्राम
यूरिया, 55 किग्रा डीएपी या 90 किलोग्राम
यूरिया, 150 किलोग्राम (एसएसपी) सिगल सूपर फॉस्फेट प्रति एकड
आवश्यक है ! इसमें आवश्यकतानुसार पोटाश का प्रयोग किया जा सकता है ! नाइट्रोजन की
आधी मात्रा एवं फास्फेट तथा पोटाश की पूरी मात्र खेत तैयारी में प्रयोग करें !बाकि
बालियों के बनने के समय करें!
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