Khas ki Kheti - Vetiver farming in Hindi


Khas ki Kheti - Vetiver farming

( Vetiveria zizanioides ) खस बहुवर्षीय घास होती है ! इसकी ऊंचाई 2 से 3 मीटर होती है ! यह वर्षा ऋतु में अधिक वृद्धि करती है ! तथा अक्टूबर नवम्बर में फूल आते है ! इसमें शीत व् ग्रीष्म में बहुत कम वृद्धि होती है !
खस का उपयोग
1)     खस की जड़ स्पंजी होती है जिसमे सुगन्धित तेल होता है !
2)     इसका उपयोग इत्र (परफ्यूम) , कॉस्मेटिक, अगरबत्ती, दवाई व् शरबत बनाने में होता है !
3)     तम्बाकू, पानमसाला एवं शीतल पेय पदार्थो में भी इसका इस्तेमाल होता है !
4)     खस की जड़ की चटाई बनती है जो पर्दे के रूप में गर्मियों में इस्तेमाल होती है ! इस पर्दे में से निकलकर हवा ठंडी और सुगन्धित हो जाती है !

भूमि

यह घास जल लग्र वाली भूमि में प्राकृतिक रूप से होती है ! तालाबो, नदी, नालो, व् अन्य क्षेत्र जहाँ पर भूमि में नमी अधिक पाई जाती है उपयुक्त होती है ! लेकिन यह घास जल मग्न दशा में नही होती है ! यह सभी प्रकार की मिटटी में हो जाती है ! 

इसकी पैदावार बलुई से दोमट, कछारी, उपजाऊ मिटटी में अधिक होती है ! इस घास की जडो में भूमि कटाव को रोकने की अधिक क्षमता होती है ! इसलिए यह भूमि की ढलानों पर, नदी के जल ग्रहण क्षेत्रो में मृदाक्षरण रोकने हेतु रोपित की जाती है ! 

दक्षिणी राज्यों में इसकी खेती उपयुक्त जल निकास वाली रेतीली दोमट मिटटी में की जाती है !

जलवायु

यह घास उष्ण एवं उपोषण जलवायु में प्राकृतिक रूप से होती है ! यह कम वर्षा वाले (100 cm) क्षेत्र व् अधिक वर्षा (200 cm ) वाले दोनों क्षेत्रो में होती है ! यह भारत के दक्षिणी भाग में प्रमुखत: आंध्रप्रदेश तथा महाराष्ट्र व् मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश व् राजस्थान में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है !

इसकी खेती केरल के त्रिचुर, पालघाट, विनाद व् त्रिवेन्द्रम जिलो में, तमिलनाडु के तिरुनलवे, मदुरई व् कोयम्बटूर जिलो में, आंध्रप्रदेश के कर्नूल तथा गोदावरी जिले में की जाती है ! 

अधिकांश तेल प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाली खस से प्राप्त होता है जो राजस्थान के भरतपुर जिले तथा उत्तरप्रदेश के मूसानगर, विसबन व् नवाबगंज में मिलती है !

किस्मे

के. एस -1, के एस – 2, धारिणी, केशरी, गुलाबी, सिम-वृद्धि, सीमैप खस -15, सीमैप खस -22, खुशनालिका एवं सुगंधा प्रमुख किस्मे सीमैप से विकसित की गई है ! 

हाइब्रिड 8 व् हाइब्रिड 7 आई. ए. आर. आई द्वारा विकसित की गई है !

स्लिप की संख्या

80000 प्रति हेक्टेयर

रोपने की दुरी

35 से 45 cm

रोपाई का समय व् विधि

मानसून की वर्षा शुरू होने पर खेत तैयार करने के बाद बीज की कतारों में बुवाई कर दी जाती है ! स्लिप लगाने के लिए 50 cm के अंतर से खेत में मेड बना ले ! मेड के दोनों तरफ 24 से 30 cm के अंतर से स्लिप लगा देते है ! सिंचित दशा में ग्रीष्म ऋतू के प्रारम्भ में स्लिप को नालियों में लगाते है !

खाद / फ़र्टिलाइज़र

10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कम्पोस्ट तथा राख एवं मूंगफली की खली रोपाई के समय देते है ! नाइट्रोजन 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 1 महीने बाद देते है !

खुदाई / कटाई

18 से 24 महीने के बाद जडो की खुदाई शुष्क मौसम में की जाती है ! 15 से 20 cm की ऊंचाई से तना काटकर अलग कर दिया जाता है ! उसके बाद खुदाई की जाती है ! व् जडो को निकाल लेते है ! मिटटी को पुन: गहरी खोदते है जिससे बची हुई जड़े निकल जाती है !

पैदावार / उपज

3 से 5 टन ताजी जड़े प्रति हेक्टेयर पैदा होती है ! तेल की मात्रा 0.4 से 0.6 % होती है ! 12 से 17 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खस का तेल मिलता है ! कुल खर्च 30 हज़ार प्रति हेक्टेयर के लगभग होता है ! 
  1. कुल आय – तेल 10000 से 12000 रूपए प्रति किलो तक बिकता है ! 
  2. सुखी जड़े 100 रूपए किलो तक बिक जाती है ! 
  3. इस प्रकार प्रति हेक्टेयर 2 से 2.5 लाख की कमाई की जा सकती है ! यह लाभ दो वर्षो में मिलता है !

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