मक्का
जायद मक्के की खेती लगातार बढ़ रही है। किसानों का
रूझान सूरजमुखी से हटकर अब जायद मक्के की तरफ बढ़ रहा है इसका क्षेत्र हर सीजन में
बढ़ रहा है।
इसकी उपज एवं क्रय मूल्य अच्छा होने की वजह से किसान भाई इसको अब अधिक
पसन्द करते हैं। जायद मक्के की शस्य क्रिया का विवरण नीचे दिया गया है।
उन्नत किस्में :-
पो.एम.एच10. डी.के.सी. 9108,
एच.एच.एम.-2. एच.एम.-4. पी.एम.एच.-1,
पी.एम.एच-2,
पायनियर कम्पनी की किस्में,
सीड टेक कम्पनी की किस्में,
मोन्सान्टों
कम्पनी की किस्में इत्यादि !
खेत की तैयारी:-
खेत तैयार करने के लिए 12 से 15 सै.मी. गहराई तक खूब जुताई करें जिससे सतह के जीवाशं. पहली फसल के अवशेष,
पत्तियों आदि या कम्पोस्ट नीचे दब जाएँ। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले
हल से एक जुताई करनी चाहिए। इसके बाद 4 जुताईयां और लगभग 6
बार सुहागा लगाना चाहिए। इससे बीज का अंकुरन शीघ्र तथा अच्छा होगा।
बीज की दर:-
7-10
किलोग्राम बीज प्रति एकड पर्याप्त होता है । बीज उन्नत गुणवत्ता का
होना चाहिए।
बिजाई की विधि :-
जायद मक्के की बिजाई मक्का लगाने वाली मशीन जिसे आमतौर
पर मेज प्लान्टर कहते हैं. से करें। मेज प्लान्टर डौल भी बनाता है तथा विजाई भी
करता है। इससे मक्का लगाई का खर्च कम हो जाता है। डौल पूर्व-पचिम दिशा में बना
होना चाहिए तथा बीज की बिजाई डौल के दक्षिण दिशा में होना चाहिए। इससे अंकुरण ठीक
ढंग से होता है। तथा पौधे को पूरा प्रकाश मिलने की वजह से मजबूत भी होता है। जायद
मक्के में लाईन-से लाईन की दूरी 60 सें. मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 20
सै. मी. होनी चाहिए।
बिजाई का समय:-
20
जनवरी से 15 फरवरी जायद मक्के की बिजाई का
उत्तम समय है। 15 फरवरी के बाद बिजाई करने पर मक्के में दाने
कम बनते हैं। क्योंकि जब मक्के में फूल आने लगते हैं तो परागण अधिक तापमान होने की
वजह से सूख जाते हैं। परागण सूखने के कारण परागण सही ढंग से नहीं होता है तथा सही
प्रकार से निषेचन न होने की वजह से दाने नहीं बनते हैं तथा मक्के की उपज कम हो
जाती है।
बीच उपचार:-
भूमि एवं बीज से लगने वाली बीमारियों से बचाव के लिए
उपचारित बीज ही बायें। एक किलो बीज के उपचार के लिए वैवस्टीन या एग्रोजिमया थाइरम
इत्यादि में से कोई एक 3
ग्राम इस्तेमाल करें।
खाद की मात्रा:-
औसत उपजाऊ भूमि में संकर एवं मिश्रित किस्मों के लिए
उर्वरकों की नीचे लिखी मात्रा डालनी चाहिए।
पोषक तत्व (कि.ग्राम/एकड)उर्वरक (कि.ग्राम/एकड)नाइट्रोजन(60) फास्फोरस(25) पोटास (25)यूरिया(135) सुपर फास्फेट(150) म्यूरेट ऑफ पोटास(40) जिंक सल्फेट(10)
फास्फोरस तथा पोटास की पूरी मात्रा व एक तिहाई नाइट्रोजन बिजाई के
समय डालें। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा फसल की घटने की उँचाई के समय तथा एक
तिहाई मात्रा झण्डे आने से कुछ पहले दे । बिजाई के समय 10 कि.ग्रा.
जिंक सल्फेट प्रति एकड़ ड्रिल करने की सिफारिश की जाती है।
निराई एवं गुड़ाई:-
यदि खेत से घास फूस न निकाला जाए तो पैदावार में 20 प्रतिशत या इससे भी अधिक की कमी हो सकती है। घास-फूस को चारा होने की
दृष्टि से भी खेत में न उगने दिया जाए।
रसायनों द्वारा घास-फूस की रोकथाम:-
मक्की में हाने
वाली खरपतवार जैसे इटसिट,
चौलाई, भरवड़ी, विसकोपरा,
जंगली जूट, दूधी, हुल्हुल,
निया, सावक, मकरा आदि की
रोकथाम 400 से 600 ग्राम सीमाजीन या
एट्राजीन प्रति एकड़ 200 से 250 लीटर
पानी में मिलाकर बिजाई के तुरन्त बाद छिडकाव से की जा सकती है।
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