आमा हल्दी की खेती Amba haldi kheti in hindi

                                 आमा हल्दी की खेती


आमा हल्दी को अम्बा हल्दी (amba haldi) या  mango ginger भी कहा जाता है जिसका वानस्पतिक नाम कुरकुमा एमाडा (Curcuma amada)  है तथा  यह जिंजीवरेशी (Zingiberaceae) कुल की सदस्य है ! 



इसको बंगाली में अमाडा, गुजराती में सफ़ेद हलधर, कन्नड़ में अम्बरासिन्ना या हुलिअरासिना, मलयालम व् तमिल में मांगा इंजी, तेलुगु में ममोड़ी इलाम कहते है !

यह एक आयुर्वेदिक मसाले वाली फसल है इसका इस्तेमाल हड्डियों के दर्द, त्वचा की खुजली, भूख बढ़ाने, खांसी व् चोट के घावो को ठीक करने में किया जाता है !

आमा हल्दी (amba haldi) का उत्पादन आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, बिहार, तामिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश एवं म.प्र. के कुछ स्थानों पर भी इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा रही है !

यह पौधा हल्दी की तरह ही होता है और ऊंचाई में 2 से 3 फीट होता है और इसकी खुसबू कच्चे आम जैसी होती है ! ये पौधा इंडोनेशिया और चाइना से सम्बन्ध रखता है !
केमिकल

आमा हल्दी के कंद में फयटोस्टेरोल (Phytosterol) व् curcumin केमिकल होता है ! इसके कंद में 1.1 एसेंशियल आयल, रेसिन, गम, स्टार्च, सुगर, अल्बुमिनोइड, क्रूड फाइबर, आर्गेनिक एसिड, dcomphor, 1 beta curcumne, mycrene और cicimene होता है !

जलवायु और तापमान

गर्म एवं नम् जलवायु वाले स्थानों में आमा हल्दी (amba haldi) की पैदावार अच्छी होती है। इसके साथ ही समुद्र तल से 1300 मीटर की ऊंचाई ले स्थानों पर भी आमा हल्दी (amba haldi) का सफल उत्पादन किया जा सकता है । अम्बा हल्दी (amba haldi) उत्पादन में तापक्रम का विशेष महत्व है। भरपूर उत्पादन के लिये 12 से.ग्रे से तापक्रम कम नही होना चाहिए !

भूमि की तैयारी

आमा हल्दी (amba haldi) की खेती के लिये दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है ! इसके साथ ही जल निकास की व्यवस्था भी उचित होना चाहिये। आमा हल्दी (amba haldi) की बुवाई के पूर्व अप्रैल या मई माह में खेतों की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर लेना चाहिये ताकि मिट्टी पलट जाये फिर 5-6 जुताई करके पीटा चलाये ताकि मिटटी भुरभुरी एवं एकसार हो जाए।

बीज की बुवाई

आमा हल्दी (amba haldi) की बुवाई का उपयुक्त समय जून से लेकर जुलाई तक रहता है ! इसकी बुवाई के लिये बीज के रूप में प्रकद (rhizomes) का प्रयोग किया जाता है प्रकंद (rhizomes) पुरे या टूटे हुए प्रकंद जिनका वजन 35 से 44 ग्राम होता है बोनी के लिए उपयुक्त होते हैं। प्र

कंदों (rhizomes) को बोंने के पूर्व 0.3 % डायथेन एम-45 और 0.5% मेलाथियान के घोल मे 30 मिनिट तक डुबाना चाहिए। इसकी बोनी फ्लेट बेड़ रिज एवं फरो दोनों तरीके से भारत वर्ष में की जाती है। जमीन 25 से 30 से.मी. की दूरी पर बोया जाता है। रिज़ एवं फरो तरीके से बोनी करने पर कतार से कतार की दुरी 25 से.मी. एवं पौधो से पौधों की दूरी 25 से.मी. रखनी चाहिए।

बीज की मात्रा

8-10 क्विंटल प्रकंद (rhizomes) प्रति हेक्टेयर

खाद एवं उर्वरक

हल्दी (amba haldi) की खेती के लिये खाद एवं उर्वरक की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है क्योकि यह हल्दी भूमि में उगाई जाती है । खाद एवं उर्वरक का प्रति हेक्टेयर मात्रा निम्ननुसार है।

1.    गोबर की खाद कम्पोस्ट 30 क्विंटल
2.    अमोनियम सल्फेट 200 किलो
3.    म्यूरेट ऑफ पोटाश 150 किलो
4.    सुपर फासफेट 200 किलो
5.    युरिया 65 (टॉप ड्रेसिंग)

सिंचाई

गर्मियों में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जाती है, अर्थात् भूमि में नमी की पर्यात मात्रा होना चाहिये।

निंदाई गुड़ाई

भरपुर पैदावार लेने के लिये कम से कम 2-3 बार निदाई गुड़ाई की आवश्यकता होती है ! इसके साथ किन्दों की अच्छी बढवार के लिये मिट्टी भी चडाना आवश्यक है।

कटाई

आमा हल्दी बोने के 9 माह के बाद कटने के लिये तैयार हो जाती है और हाथ से प्रकंदों को चुन लिया जाता है। प्रकंदों की मिट्टी हटाने के लिए इसे पानी से धोया जाता है।

आमा हल्दी से कमाई (amba haldi) मूल्य

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उपजः

आमा हल्दी (amba haldi) की अच्छी पैदावार लेने के लिए उपजाऊ भूमि, उन्नत जाति तथा फसल की उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। वैसे औसत उपज 200-250 क्विंटल कच्ची हल्दी तथा 40-50 क्विंटल सूखी आमा हल्दी प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है !
आमा हल्दी के प्रकदों को पानी में बाल कर सूरज की गर्मी में सुखाया जाता है।

कीट एवं रोग

अन्य कंद फसलों की तुलना में हल्दी की फसल में कीट एवं व्याधि का प्रकोप कम होता है।

कीट- तना छेदक

जैसा की नाम से ही ज्ञात है कि इस कीट की सूड़ियां तने के अंदर ही अन्दर छेद कर बढ़ती जाती हैं जिसके परिणाम स्वरूप तना सूख जाता है।

रोकथाम

इसकी रोकथाम के लिये सूखे एवं ग्रसित तनों को काट कर या उखाड़कर खेत में बाहर नष्ट कर देना चाहिये।

रोग या व्याधिः

रोग एवं व्याधि का प्रकोप भी कम ही होता है।

प्रकंद एवं जड़ विगलन

इस रोग का कारक पीथियम एफेनीड रमेटम नामक फफूदी है इस रोग में पहले पत्तियों पीली पड़ती हैं और फिर धीरे-धीरे पूरा पौधा पीला पड़ जाता है इसके साथ ही भूमि के समीप का भाग नीला एवं कोमल हो जाता है। और प्रकंद भी सड़ जाता है। और पौधे को खींचने पर पौधा हाथ में आ जाता है तथा सड़ा हुआ प्रकंद जमीन के अंदर ही रह जाता है।

पत्तियों के धब्बा रोग

यह रोग टेफरीनां तथा कोलेटोट्राईकम आदि फफूदों के द्वारा फैलते हैं, रोग की तीव्रता में पत्तियों पीली पड़कर सुख जाती हैं तथा उपज में भारी कमी आती है।

रोकथाम

जड़ विगलन तथा धब्बा रोगों की रोकथाम के लिए बोर्डो मिश्रण (1 प्रतिशत) से कम से कम 3 छिड़काव 15-15 दिन के अंतराल से करना चाहिये।

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